छात्र जीवन किसी व्यक्ति के जीवन का एक स्वर्णिम काल होता है, ऐसा मेरा मानना है. यही वह काल है जो किसी छात्र को भविष्य में समाज के एक जिम्मेदार एवं उपयोगी सदस्य के रूप में न्यूनाधिक रूप से निर्धारित करता है. यह इसलिए भी कि किसी के चरित्र निर्माण में इस काल की महत्ता निर्विवाद है. चरित्र का विद्या से सीधा सरोकार होता है. कदाचित इसी लिए छात्र के लिए हम विद्यार्थी शब्द का भी उपयोग करते हैं. छात्र जीवन वह काल है जिसमें व्यक्ति शिक्षा और विद्या दोनों को साधता है. आजकल छात्र अपना अधिकांश समय क्षेत्र विशेष से सम्बंधित पाठ्यक्रम में सन्निहित शिक्षा जिसे विषय ज्ञान कहना अधिक उपयुक्त होगा,को हीं पढ़ने और समझने में व्यतीत कर देते हैं किन्तु उनके विद्या अर्जन का उद्योग अधूरा हीं रह जाता है. परिणामस्वरूप छात्र जीवन में जिस प्रकार का व्यक्तित्व निर्माण होना चाहिए वह हो नहीं पाता है. उसका ज्ञान पात्रता से रहित हो जाता है. पात्रता से रहित जो भी चीज चाहे वह धन हो या पद अनिष्टकारी होता है; स्वयं व्यक्ति के लिए तथा समाज के लिए भी. विषय मात्र का ज्ञान एवं दक्षता अर्जित करते व्यक्ति को...