जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना
प्रस्तुत है कविवर गोपाल दास नीरज की एक कविता ** जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है ** ***************************** जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है। १. जिस वक़्त जीना ग़ैर मुमकिन सा लगे उस वक़्त जीना फ़र्ज़ है इंसान का, लाज़िम लहर के साथ तब है खेलना, जब हो समन्दर पे नशा तूफान का जिस वायु का दीपक बुझाना ध्येय हो उस वायु में दीपक जलाना धर्म है। २. हो नहीं मंज़िल कहीं जिस राह की उस राह चलना चाहिए इंसान को जिस दर्द से सारी 'उमर रोते रहे वह दर्द पाना है ज़रूरी प्यार को जिस चाह का हस्ती मिटाना न...