Posts

Showing posts from April, 2025

अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त.(एक लम्बी कहानी)

अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त. (एक लम्बी कहानी) ************************************************** विभूति नारायणजी गाॅंव में रहते थे. अपने जमाने में मेरिट से पढ़ाई कर वे सेकेंड डिवीजन से बीए भी पास किए थे; किन्तु चाह कर भी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर सके. एक दो जगह लिखित परीक्षा पास करने पर इंटरव्यू के लिए बुलावा भी आया. इंटरव्यू देने के बाद कमरे से बाहर चपरासी कह रहा था-अरे इ सब नाटक हो रहा है. सब सीट पर बहाली पहले से फिक्स है.  बात जो भी हो; नौकरी नहीं मिल पाने पर उनके पिताजी ने कहा- कहॉं नौकरी के चक्कर में भटक रहे हो. गाॅंव में हीं हमारे खेती-किसानी में हाथ बटाओ. तब से गाॅंव में हीं रह कर खेती किसानी करने लगे. धीरे-धीरे उसी में रम गए और खुश रहने लगे.शादी तो पढ़ते हीं समय हो गई थी और जैसा कि स्वाभाविक है शादी के साल भर में हीं एक लड़का भी पैदा हो गया. विभूति बताते हैं कि उनके पिताजी ने हीं उसके लड़के का नाम सुफल नारायण रखा था. तब मां-बाप अपने बच्चे का नाम तक अपनी इच्छा से नहीं रख सकते थे.अब जमाना भले कुछ और हो गया हो.   सुफल बड़ा होता गया. कभी-कभी जब मन करता तो पूछ बैठते-ब...

सच को सच कहना और ----

सच को जानता हूॅं पहचानता भी हूॅं पर सच को सच कहने की ताक़त नहीं  झूट को जानता हूॅं पहचानता भी हूॅं पर झूट को झूट कहने का साहस नहीं                    *** साहब को ख़ुश रखने की ख़ातिर  वही बोलता हूॅं जो वो सुनना चाहते हैं  वही लिखता हूॅं जो वो पढ़ना चाहते हैं                    *** इस दौर में जो नीम सच और नीम झूट बोलने की हिक्मत रखता है  दुनिया उसे हीं हाथों-हाथ लेती है. दुनिया उसे हीं सलाम और उसी का इस्तक़बाल करती  है.                      *** जो बड़ी ख़ूबसूरती से झूट में सच को मिलाने का माहिर है  दुनिया में वही 'आलिम है वही फ़ाज़िल है वही कामिल है कहलाने के क़ाबिल है.                     *** सच को सच कहनेवाला और झूट को झूट  निगाह ए दुनिया में है वो निहायत हीं बेवक़ूफ़                     *** ~राजीव रंज...

मनुष्य के अंतःकरण में विद्यमान परमाणु दोष

मनुष्य का जीवन माया द्वारा शासित है. अज्ञान माया का मुख्य हथियार है. इसके प्रहार से व्यक्ति का विवेक नष्ट हो जाता है और विवेक के नाश होते हीं मनुष्य तमाम तरह के दोषों से पीड़ित हो जाता है.   ये दोष सूक्ष्म रूप से न्यूनाधिकता में प्रायः सभी मनुष्यों में विद्यमान हैं. इसलिए इन्हें परमाणु दोष कहते हैं. सूक्ष्म होने के कारण ये तुरंत दिखते भी नहीं और ये जल्दी पकड़ में भी नहीं आते हैं.  कहने की आवश्यकता नहीं है कि जिसका विवेक सदैव जाग्रत रहता है उसे इन परमाणु दोषों से उत्पन्न काम,क्रोध, लोभ, दम्भ, कपट, पाखंड परास्त नहीं कर सकता है.  लेकिन यह भी सत्य है कि व्यक्ति का विवेक सदैव जाग्रत नहीं रहता है. यहाॅं यह बात सामान्य मनुष्य के लिए कही जा रही है. योगी, जीवन-मुक्त महात्माओं का विवेक हम सदैव जाग्रत मान सकते हैं क्योंकि उनमें मायाजन्य दोषों का प्राय: अभाव पाया जाता है. अस्तु.                                  *** शास्त्रों में इन दोषों की मुख्यतः चार विभागों के अंतर्गत विवेचना की गई है. ये निम...

पति-पत्नी और मोबाइल.

पति-पत्नी और मोबाइल. *************************************** पति-पत्नी का अलग-अलग दिन भर मोबाइल पर रहने से कहीं अच्छा है कि दोनों किसी-किसी छोटी बात को लेकर आपस में झगड़ पड़ें.  बहाना कुछ भी हो सकता है. The list is illustrative; not exhaustive.                          *** १.कभी दाल में नमक ज्यादा होने का मु'आमला बनाकर  २.कभी घर में चश्मा नहीं मिलने को मुद्दा' बनाकर  ३. कभी पेन यथा स्थान नहीं पाने पर इसे इशू बनाकर  ४. कभी पत्नी द्वारा पति के "बच्चे की पढ़ाई पर जरा भी ध्यान नहीं देने" का बहाना बना कर  ५. कभी पत्नी पर पति द्वारा "बच्चे को बिगाड़कर रख देने" का इल्ज़ाम लगा कर  वग़ैरह वग़ैरह वग़ैरह.                        *** खुद में खोए रहने की प्रवृत्ति और संवादहीनता जो मोबाइल के कारण बढ़ रही है, वह कम होगी और इस प्रकार घर का वातावरण बोझिल नहीं मा'लूम देगा. घरेलू संवादजन्य क्रियाकलाप शुष्क हो रहे दाम्पत्य प्रेम को सींचने का काम करता है. ...

जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा

जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा  *************************************** आज हनुमान जयंती है. इस पुनीत अवसर पर हनुमान जी का स्मरण करना चाहिए. ये हनुमान जी हीं थे जिनकी कृपा से गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम के दर्शन हुए. कृतज्ञ तुलसीदास जी ने हनुमानजी के प्रति आभार व्यक्त करने में हनुमान चालीसा की हीं रचना कर दी.                           *** हनुमान चालीसा के नाम,गुण और प्रभाव के बारे में इतना कहना हीं पर्याप्त है कि इसे “पढ़’’ लेने मात्र से हीं व्यक्ति सिद्ध हो जाता है. इसकी घोषणा मैं नहीं बल्कि गोस्वामी जी ने स्वयं उसी हनुमान चालीसा में कर दिया है. शायद आपने भी हनुमान चालीसा की इस पंक्ति पर ध्यान दिया होगा. “जो यह 'पढ़ै' हनुमान चलीसा होय 'सिद्धि' साखी गौरीसा.” गोस्वामीजी ने यह नहीं कहा कि जो यह गावै या ध्यावै या पूजै या अर्चै; उन्होंने मात्र इतना कहा कि “जो यह पढ़ै”. अर्थात् हनुमान चालीसा के पढ़ने मात्र से व्यक्ति सिद्धि प्राप्त कर लेगा.                       ...

मानस चालीसा

-: श्रीरामचरितमानस चालीसा :-   (श्रीराम जयराम जय जय राम) ************************************* सकल जीव संरक्षक राम । श्रीराम जयराम जय जय राम।‌।(१) चराचर सृष्टि पूजित राम ।   श्रीराम जयराम जय जय राम।।(२) कालभुजगस्य जनक: राम। श्रीराम जयराम जय जय राम ।।(३) हनुमतसेवित श्रीसीताराम।    श्रीराम जयराम जय जय राम ।।(४) भवानीशंकर वंदित राम। श्रीराम जयराम जय जय राम ।।(५) काकभुशुण्डि बालक राम। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(६) दिनेश वंश भूषण राम।       श्रीराम जयराम जय जय राम।‌।(७) कौशल्या के नंदन राम। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(८) भरत सेवक स्वामी राम। श्रीराम जयराम जय जय राम ।।(९) दशरथ के प्राणों के प्राण। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१०) ताड़कादि निपातक राम। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(११) विश्वामित्र मखरक्षक राम‌‌। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१२) अहिल्या के उद्धारक राम।  श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१३) वैदेही प्राणवल्लभ राम । श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१४) जनक सुनैना स्नेही राम।   श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१५) जामजग्निगर्वविभंजकराम। श्रीराम जयराम जय जय ...

वह 'इश्क़ हीं कैसा जो

वह 'इश्क़ हीं कैसा जो ज़ाहिर होने की ख़ातिर बेताब हो. वह मंज़िल हीं क्या जो घर से निकलते हीं दस्तेयाब हो. वह फूल हीं कैसा जो काॅंटों के बीच न खिल सके. वह अनवार हीं क्या जो नफ़रत को न मिटा सके. वह सड़क ही क्या जो आगे जाकर आपस में मिलने की बजाय ख़त्म हीं हो जाती हो. वह आदमी हीं कैसा जिसकी पहचान उसके 'ओहदे के बग़ैर न हो पाती हो.                     ** जो शख़्स कोई ख़ुद को ख़ुद से मिलाने की ख़्वाहिश अगर दिल में रखे. तो क्या' व 'कैसा' के इस मे'यार को पार कर जाने की कोशिश जारी रखे. 'ईद मुबारक. ~राजीव रंजन प्रभाकर. وہ عشق ہیں کیا جو ظاہر ہونے کی خاطر بیتاب ہو  وہ منزل ہیں کیا جو گھر سے نکلتے ہیں دستیاب ہو۔ وہ پھول ہیں کیسا جو کانٹوں کے بیچ نہ کھل سکے  وہ انوار ہیں کیا جو نفرت کو نہ مٹا سکے وہ سڑک ہی کیا جو آگے جاکر آپس میں ملنےکی بجاے ختم ہیں ہو جاتی ہو۔ وہ آدمی ہیں کیا جس کی پہچان اس کے عہدے کے بغیر نہ ہو پاتی ہو۔                               ** جو شخص کوئی ...

यूॅं ख़फ़ा मत बैठे रहो.

मनाने की उम्मीद में यूॅं ख़फ़ा मत बैठे रहो  चलो उठो भी और अपना काम शुरू' करो आज के दौर में कोई किसी को मनाने आता नहीं  मत रूठो जब ख़ुद को ख़ुद से मनाना आता नहीं  ख़ुद से ख़ुद को मनाना भी एक 'आला फ़नकारी है  वरना ज़िंदगी जीना भी एक बहुत बड़ी दुश्वारी है. ~राजीव रंजन प्रभाकर  منانے کی امید میں یوں خفا مت بیٹھے رہو  چلو اٹھو بھی اور اپنا کام شروع کرو آج کے دور میں کوئی کسی کو منانے آتا نہیں  مت روٹھو جب خود کو خود سے منانا آتا نہیں  خود کو خود سے منانا بھی ایک اعلیٰ فنکار ہے ورنہ زندگی جینا بھی ایک بہت بڑی دشواری ہے ~راجیو رنجن پربھاکر