अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त.(एक लम्बी कहानी)
अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त. (एक लम्बी कहानी) ************************************************** विभूति नारायणजी गाॅंव में रहते थे. अपने जमाने में मेरिट से पढ़ाई कर वे सेकेंड डिवीजन से बीए भी पास किए थे; किन्तु चाह कर भी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर सके. एक दो जगह लिखित परीक्षा पास करने पर इंटरव्यू के लिए बुलावा भी आया. इंटरव्यू देने के बाद कमरे से बाहर चपरासी कह रहा था-अरे इ सब नाटक हो रहा है. सब सीट पर बहाली पहले से फिक्स है. बात जो भी हो; नौकरी नहीं मिल पाने पर उनके पिताजी ने कहा- कहॉं नौकरी के चक्कर में भटक रहे हो. गाॅंव में हीं हमारे खेती-किसानी में हाथ बटाओ. तब से गाॅंव में हीं रह कर खेती किसानी करने लगे. धीरे-धीरे उसी में रम गए और खुश रहने लगे.शादी तो पढ़ते हीं समय हो गई थी और जैसा कि स्वाभाविक है शादी के साल भर में हीं एक लड़का भी पैदा हो गया. विभूति बताते हैं कि उनके पिताजी ने हीं उसके लड़के का नाम सुफल नारायण रखा था. तब मां-बाप अपने बच्चे का नाम तक अपनी इच्छा से नहीं रख सकते थे.अब जमाना भले कुछ और हो गया हो. सुफल बड़ा होता गया. कभी-कभी जब मन करता तो पूछ बैठते-ब...