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Showing posts from July, 2022

बोर्ड परीक्षा'क रिजल्ट.

एम्हर बूझि पड़ैत जे बोर्ड परीक्षा केर रिजल्ट सब बहरायल ये.बिहार बोर्ड अपन रिजल्ट निकाललक कि नहिं से नहिं पता किंतु आयसीएससी आओर सीबीएसई केर रिजल्ट निकैल गेल अछि.  एपार्टमेंटक जतेक विद्यार्थी लोकेन परीक्षा में बैसल छलाह किनको ९० प्रतिशत से कम नम्बर नहिं छैन्ह. जकरे पुछै छी से कहै ये हमको ९२ परसेंट तो कियो कहै ये ९६ परसेंट आदि-आदि. सब खुशी से बताह छैथ. हुनकर गार्जियन लोकैन हुनको से बेसी. सुनाबऽ लेल ओ हमरा लग अबै जाय छैथ अवश्य किंतु किनको हाथ में मिठाई-तिठाई किछु नहि रहैत छैन्ह.  ओना हमरा शुगर ये; से मिठाई हम बेसी खाइतो नहिं छी.ओना कियो खुआबऽ चाहता ते हुनकर मन छोट नय भऽ जाय एकर विशेष खियाल राखि हम मना नहिं कऽ सकैत छी; हें! हें! हें!😁.              केयो कहै ले आबै छैथ- "अंकल! आय गौट 96 परसेंट" तऽ केयो अकैड़ कऽ कहै छथिन्ह- "99 परसेंट मार्क्स आया है लेकिन मैं अंकल सटिस्फाइड नहीं हूं क्योंकि इंग्लिश में 1 मार्क काट लिया गया है. सोच रहे हैं चैलेंज करने का." **************************************************** इ सब सुनि के हम छगुंता में पड़ि जायत छी...

कर्मविषयक कुछ शास्त्रोक्त सिद्धांत

कर्म के बारे में ठीक-ठीक जानना अत्यंत कठिन है फिर उसके बारे में कुछ कहना तो और भी कठिन है. बड़े-बड़े लोग इसमें चूक कर जाते हैं. अर्जुन तो मोह में आकर चूक कर हीं रहे थे कि भगवान ने उन्हें उबार लिया. लेकिन हमें उस चूक से बचाने के लिए अब उनकी वाणी हीं रह गई है या फिर शास्त्र में यत्र यत्र- तंत्र बिखरे अनमोल श्लोक जिस पर श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक चलने पर हम गड्ढे में गिरने से बच सकते हैं. गीता में भगवान ने इस विषय में पहले हीं कह दिया है -  "गहना कर्मनो गति:". क्या कर्म है क्या अकर्म है या विकर्म है इसका निर्णय करने में विद्वान और कर्म को तत्व से जानने का दावा करने वाले भी मोहित हो जाते देखे गए हैं.  *********************************************** जो बुद्धिमान होते हैं वे बहुत सोच समझकर कोई काम करते हैं. फिर भी इस सम्बन्ध में ठीक-ठीक निर्णय करना कोई आसान काम नहीं है. प्रायः अपनी हीं स्वार्थ सिद्धि की दुर्वृत्ति हमारे उस निर्णय लेने की क्षमता को गड़बड़ा देती है.          मोटे अर्थ में जो कर्म व्यक्ति को बांधता हो उसे करने से बचना चाहिए. ऐसा तब हो सकता है ज...

दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य.

पटना रेलवे स्टेशन के समीप स्थित प्रसिद्ध महावीर मंदिर की दीवार पर यदि आपने ध्यान दिया होगा तो निम्नलिखित श्लोक को एक जगह लिखा अवश्य देखा होगा- दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य: रामस्याक्लिष्टकर्मण:। हनूमाञ्शत्रुसैन्यानां निहन्तामारूतात्मज ।। आज इसी श्लोक की चर्चा के बहाने कुछ आनंद प्राप्ति का उद्योग प्रस्तुत पंक्तियों के सहारे किया गया है.  (प्रसंग रामचरितमानस एवं बाल्मीकि रामायण पर आधारित है कतिपय महत्वहीन हेरफेर के साथ) **************************************************** हनुमान ने कहा - माता मुझे बड़े जोर की भूख लगी है. अशोक वाटिका में ऐसे सुंदर-सुंदर पके फलों को देख मेरी क्षुधा और बलवती हो गई है; माते! मेरे मुंह में पानी आ रहा है. आप आज्ञा दें तो मैं इन सुस्वादु फलों को खाकर अपने पेट की ज्वाला को शांत कर दूं.  सीताजी- बेटा तुम कैसी बातें करते हो? तुम्हें बुद्धि नहीं है? दुष्ट रावण ने इस बाग की रखवाली का जिम्मा अपने राक्षसी सेना की एक विशेष टुकड़ी को सौंपा हुआ है. नाना प्रकार के शस्त्रास्त्रों से लैस वे घोरकर्मा निशिचर रात दिन इस विपिन की रखवाली करते हैं. वे तुम्हें देखते हीं मार डाले...

जीएसटी @५%

*********************************************** आज बाजार में आटा,चावल-दाल,नमक,तेल वगैरह खरीदने हेतु जाने पर लगाए गए "कर" चुभने से तुलसीदासजी की ये पंक्तियां बरबस याद आ गई जिसे मैंने कभी अपने स्वर्गीय पिताजी के मुख से सुनी थी.  *********************************************** बरषत हरषत लोग सब करषत लखै न कोई। तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सन होइ।। ~तुलसीदास(दोहावली). *********************************************** तुलसीदासजी कहते हैं कि सूर्य जब इस धरा से जल को खींचता है,तब किसी को पता भी नहीं चलता, परंतु जब बरसाता है,तब सब लोग हर्षित हो जाते हैं. इसी प्रकार प्रजा को बिना सताए (यहां तक कि कर देने में प्रजा को कुछ भी कष्ट न हो; इतना सा उगाह कर समय पर उसी धन से व्यवस्थितरूप से प्रजा का हित करने वाला) सूर्य सरीखा राजा प्रजा को सौभाग्य से ही मिलता है. ***********************************************  पता नहीं ऐसा वीर एवं धुरंधर अर्थशास्त्री विश्व में कब जन्म लेगा जो शासन को उन उपायों को खोज कर बता दे जिसमें खाने-पीने की वस्तुओं की कीमत में वृद्धि के बिना भी कराधान सम्भव हो सके.  ...

Some Terms From The Bhagwadgita.

           I have found a number of terms in the Bhagavad Gita.These terms are worth knowing. They have been used by Shri Bhagwan in his discourse with Arjuna towards clearing his mind that was full of doubts. We know that the mind of Arjuna stood deluded when he found that it was none but all his relatives-close or distant whom he was supposed to fight with.            In course of removing the delusion born out of ignorance Lord explained those terms to Arjuna by way of going to define them.  ***************************************************           The following represents the collection of such terms as one may find useful,interesting and in quite some cases self-instructing too. Here we find- 1."योग" **************************************************** Yoga **************************************************** Lord has defined "योग" as "समत्वं योग उच्यते". This समत्वं is being balanced in c...

Mulling "justice" on the occasion of International Day for justice (17th July)

My daughter asked me; What is justice?  I resorted to beating about the bush.I just repeated a number of cliches associated with the term "justice" like "justice delayed is justice denied"," justice hurried is justice buried"," justice should not only be done but it must seem to be done" etc.etc.  But that did not satisfy her.  She told-all these what you are saying may well be the "desirables" or "doables" in respect of justice but what actually is justice?  I had no option but to fumble again.Then  I tried to divert her. I asked- What occurred in your mind to ask this question all of a sudden? Nothing special save that it is 17th July which is observed as International Day for Justice-She said.  It was again a double whammy for me; for I didn't know this fact even.  I said- Ok.Ok. It is a matter of General Knowledge which for years I have not been in touch with. Having found myself perplexed at her query she tried to con...

Twenty-Seven Shlokas of the Bhagwadgita: Their Usefulness for Students.

I should not have endeavoured to write even a word on the Gita for the students as there is already one titled "Bhagwadgita:A Handbook for Students" written by no less than C. Rajgopalachari. That Book of Rajaji is a explanatory exposition of 226 slokas of the Gita. The above-mentioned Book is aimed at acquainting the students with basic understanding of the religion of our fathers, which is the background of all the noble philosophy,art, literature and civilization that we have inherited. Its study enables a student to become a man of wisdom with ample knowledge of philosophy of religion and action alike.  Thus whereas the objective of the Book by C.Rajgopalachari is broader in scope and purpose my instant endeavour is extremely limited.  I propose to select only such slokas as are less philosophical/religious/devotional but more direct in respect of meanings. Moreover; I thought they should seek to address the infirmities born out of immaturity by virtue of young and tender...

एक वार्तालाप: भगवान और उनके एक भोगासक्त साधक के बीच.

एक वार्तालाप: भगवान और उनके एक भोगासक्त साधक के बीच. **************************************************** भगवान अपने भक्तों को बहुत सुविधा दिये हुए हैं. और हम हैं कि ******* **************************************************** जरा देखिए. वे कहते हैं- मेरी भक्ति जरा भी कठिन नहीं है; बात ये है कि तुमने उसे कठिन समझ रखा है.  मेरी तुमसे कोई विशेष अपेक्षा तो है नहीं. यदि तुम अपने मन और बुद्धि को मेरे में लगा ले तो इतने से हीं तूं मेरा भक्त हो गया. क्योंकि ऐसा तेरा मन और बुद्धि मेरे में निवेश होने पर समझो कि तुम मुझमें हीं निवास कर रहे हो. बस और कुछ करने की आवश्यकता हीं नहीं. साधक कहता है- ये बातें सुनने में तो बड़ी सरल लगती है प्रभु!पर ऐसा हो नहीं पाता. मैं ठहरा सांसारिक प्राणी!इस संसार में तुम्हारे में मन बुद्धि लगाना इतना आसान भी नहीं है.और भी तरह के काम-धंधे हैं इस साधक को. तुम समझते हीं नहीं! भगवान कहते हैं- अच्छा कोई बात नहीं. इससे भी सरल उपाय है.तुम मुझे प्राप्त करने की इच्छा तो कर हीं सकते हो.अभ्यास से वही करो. जब इतने तरह की तुम लौकिक इच्छा कर सकते हो तो मेरी प्राप्ति की इच्छा क...