३ जून.
आज का दिन भारत के लिए ऐतिहासिक महत्व का है.
लेकिन अफसोस कि इस तिथि से जुड़े उस ऐतिहासिक घटना जिसने इस मुल्क को दो हिस्सों में बांट दिया, की चर्चा तक ठीक से मिडिया में नहीं होती.कम से कम एक अंग्रेजी अखबार तथा एक हिंदी दैनिक जिसका मैं ग्राहक हूॅं, में तो मैंने इसका कोई जिक्र नहीं पाया.
शायद आपने भी अनुमान लगा लिया होगा. इसी तारीख अर्थात् ०३ जून १९४७ को भारत को दो फाड़ करने वाला ''प्लान'' जो 'माउंटबेटन प्लान' के रूप में विश्वविख्यात हुआ,बतौर उपहार भारत भाग्यविधाता(?) द्वारा प्रदान करने की कृपा की गई.
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इसे हाथ में उनके देने से पहले हीं हमारे कर्मठ और जुझारू नेता लपकने को व्यग्र थे मानो 'अभी नहीं तो कभी नहीं'.
ये श्रीमान माउंटबेटनजी का तिलिस्म हीं कहिए कि चंद दिनों के भीतर ही (*२० फरवरी १९४७ को तो सरकार बहादुर साहब वायसराय भारत-भूमि पर कदम हीं रखे थे)जो आजादी के दीवाने थे,वे बिना देरी यकायक बंटवारे के पैरोकार/पक्षकार बन बैठे.
बॅंटवारे की लकीरें ठीक से खिंच भी नहीं पायी कि इस पार से उस पार और उस पार से इस पार महज जाने भर में वो मार काट मची कि सिर्फ सप्ताह भर में कोई दस लाख लोग मारे गए.
दुख की बात ये कि इस नर संहार की जवाबदेही लेने के लिए कोई तैयार नहीं.
Technically rather euphemistically इस बॅंटवारे को सत्ता हस्तांतरण यानी "ट्रांसफर आप पावर" का नाम देकर बंटवारे के दर्द को कम करने की जरूर कोशिश की गई. ***
मामला कुरूप न मालूम पड़े इसलिए सुंदर शब्दावली में इसे "लास्ट प्लान ऑफ़ इंडिपेंडेंस" की संज्ञा दी गई.
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और मार-काट! हों तो बला से.
ऐसे दंगे तो इतनी बड़ी उपलब्धि के सामने कुछ भी नहीं.
और क्या वे आज नहीं होते?
इसे कहते हैं जन सेवा की आड़ में सत्ता प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा!
सत्ता का तिलिस्म भी यही है जिसका चारण नीति और नीयत दोनों बड़ी निष्ठा के साथ हाथ जोड़ करते रहते हैं.
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राजीव रंजन प्रभाकर.
०३ जून २०२१.
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