बड़ों के प्रति सम्मान : हमारी संस्कृति की मौलिक विशेषता

फाल्गुन बीत गया। कल होली का उल्लास सर्वत्र दर्शनीय था। संध्या में बच्चे एवं युवक को घर के श्रेष्ठ एवं बुजुर्गों के चरणों पर अबीर रख प्रणाम करते देख मन हीं मन सोचने लगा कि भारत में ऐसे तो दिन प्रति दिन मूल्यों में गिरावट का दौर बेतहाशा जारी है किन्तु अभी भी हमारा समाज इस सीमा तक मूल्यविहीन नहीं हो चला है जहां बड़े, बुजुर्गों के प्रति आदर और सम्मान बिल्कुल हीं रसातल को चला गया हो।परन्तु क्या इनका यह सम्मान प्रदर्शन रस्मी है? या यह भी जो यत्किंचित दिख रहा है, कालान्तर में अर्थानर्थ के दबाव में शुष्क हो कर लुप्त हो जायेगा? कह नहीं सकता। घर, परिवार और समाज में ऐसे व्यक्ति अब भी हैं जिनका अपना आचरण तथा व्यवहार श्रेष्ठ एवं वृद्ध के प्रति इतना स्नेह एवं आदर से भरा रहता है जिससे अनायास हीं छोटे को प्रेरणा मिलती है। इस दायित्वविमुख परिवेश में सचमुच ऐसे व्यक्ति बंदनीय हैं जिनका आज हमारे समाज को ऋणी होना चाहिये। वरना समाज तो अब ऐसे युवक और युवतियों का समूह बनता जा रहा है जहां सम्पर्क/सम्बंध का हेतु हीं एक दूसरे को परस्पर लाभ के लिए नियोजित करना है। भला इस नियोजन में वृद्ध, जीर्ण एवं अशक्तों का क्या प्रयोजन! उनके लिए वृद्धाश्रम जैसी संस्थायें तो है ही। अस्तु।
कुछ दिन पूर्व समाचार पत्र में भारत के राष्ट्रपति आदरणीय श्री रामनाथ कोविंद जी का एक चित्र छपा था जिसमें वे किसी समारोह में एक बुजुर्ग महिला से आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। प्रधानमंत्री जैसे व्यस्ततापूर्ण पद पर रहते हुए अपने प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी का अपनी वृद्धा मां से जब तब आशीर्वाद लेने उनका मां के पास जाना, उनका अपने पूज्य माताजी के प्रति आह्लाद, उनका कुशलक्षेम के प्रति संवेदनशील होना हम सभी भारतीय के लिए अनुकरणीय है। किन्तु मित्रों! अच्छा देखना, अच्छा सुनना इत्यादि अच्छा तो है हीं यह और भी अच्छा हो जाता है जब हम स्वयं भी इस अच्छाई का सद्भावनापूर्वक आचरण करने में प्रवृत हो जाते हैं।
एक बार किसी प्रसंग में हो रही चर्चा के दरम्यान मेरे बड़े भाई ने मुझे बताया था कि वृद्ध का शाब्दिक अर्थ 'बढ़ा हुआ' होता है और व्यक्ति किसी अन्य से निम्नलिखित तरीके से बढ़ा हुआ हो सकता है-
(क) जब उसे दूसरे की अपेक्षा ज्यादा अधिकार प्राप्त हो- ऐसे व्यक्ति को हम अधिकारवृद्ध कहते हैं। उच्चपदस्थ व्यक्ति को जो सम्मान प्राप्त होता है उसका आधार उस व्यक्ति का अधिकारवृद्ध या पदवृद्ध होना है। सम्मान या आदर देने का यह औपचारिक आधार है। दफ्तर का कोई बुजुर्ग बाबू अपने नवयुवक हाकिम को प्रणाम इसी आधार पर करता है।
(ख) जब व्यक्ति कुटुम्बीय सम्बंध के अनुसार ऊंचे सोपान पर स्थित हो- इसी आधार पर हम उस व्यक्ति को प्रणाम करते हैं जो भले हीं हमसे उम्र में छोटे जरूर होते हैं किन्तु रिश्ता में चाचा, मामा इत्यादि होते हैं। ऐसे व्यक्ति सम्बंधवृद्ध कहलाते हैं।अर्थात ये सम्बंध में हमसे श्रेष्ठ हैं उम्र में हों न हों।
(ग) जब किसी व्यक्ति का ज्ञान, विवेक और साधना की दृष्टि में दूसरे से श्रेष्ठ माना जाता है तो ऐसे व्यक्ति को ज्ञानवृद्ध की संज्ञा दी जाती है। अर्थात ऐसे व्यक्ति का ज्ञान- विवेकवार्धक्य उन्हें आदर और सम्मान का पात्र बनाता है चाहे उसकी अवस्था कुछ भी हो। व्यासपुत्र महात्मा शुकदेव बालक थे किन्तु ज्ञानवृद्ध होने के कारण सभी उनके चरणों में शीश झुकाते थे। यही कारण है कि व्यासगद्दी पर बैठे बालक जो भागवत की कथा बांचता है, को हम श्रद्धा से प्रणाम करते हैं। उस बालक का ज्ञान हीं उसके सम्मान का कारक है।
(घ) और व्यक्ति की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के पूर्णतः निरपेक्ष यदि उसकी अवस्था(वय)हमसे अधिक है तो वह हमसे वय में बढ़ा हुआ होनेमात्र से वह हमारे लिए सम्मानीय एवं आदरणीय है चाहे वह हमसे अधिकार में या सम्बन्ध में, या ज्ञान हीं में बढ़ा हुआ हो अथवा नहीं। इस कोटि के वृद्ध वयोवृद्ध कहलाते हैं। यही कारण है कि संस्कारी व्यक्ति अपने सन्तान को ऐसी शिक्षा देते हैं जिसके फलस्वरूप उनका पुत्र/पुत्री परिवार/प्रतिष्ठान की सेवा में नियुक्त जिस किसी भी जाति, धर्म के वयोवृद्ध व्यक्ति को चाचा, मामा के सम्बोधन से हीं उन्हें सम्मानित करते हैं।
अब एकसाथ उपस्थित पदवृद्ध, सम्बंधवृद्ध, ज्ञानवृद्ध और वयोवृद्ध में सबसे पहले सम्मान पाने का अधिकारी कौन है तो इसमें भी वरीयता वयोवृद्ध को हीं दिया गया है। लोक और वेद दोनों में वयोवृद्ध हीं सम्मान-सोपान में शीर्षस्थ हैं और विवेकसम्पन्न को इसी मुताबिक अपने व्यवहार को व्यवस्थित करते प्रायः देखा भी जाता है।
मनुस्मृति में श्लोक है -
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
                               (CH II, 121)
A Person who has developed the habit of giving respect to elders, ensures himself the fulfillment of four fold values of life, acquires knowledge, fame and physical and moral strength as well.
बड़े को आदर देने से जब इतना कुछ सहज हीं करतल प्राप्य हो तो हम इसके प्रति क्यों उदासीन हो गये हैं? बड़ों के आशीर्वाद की शक्ति अमोघ है, ऐसा आचरण और विश्वास दृढ़तापूर्वक करके तो देखिये!
सादर,
राजीव रंजन प्रभाकर
22.03.2019.

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