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Showing posts from March, 2025

एक शिक्षाप्रद कहानी.

यह कहानी मैंने गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित एक पुस्तक में पढ़ी थी. इस उपदेशप्रद कहानी गीता प्रेस के संस्थापक स्वनामधन्य सेठ ब्रह्मलीन स्व.जयदयाल जी गोयन्दका ने लिखी थी. इसी कहानी को मैंने अपने शब्दों में कतिपय महत्वहीन हेरफेर के साथ लिखने का प्रयास किया है.  इसके पढ़ने के उपरांत आजकल के अधिकांश भोगैश्वर्यासक्त कथावाचक या प्रवचनकर्ता जो नाना प्रकार के श्रृंगार कर कथावाचन या उपदेश देने का उपक्रम करते हैं,का यदि सहसा स्मरण हो जाए तो कोई हरज भी नहीं है.                             *** एक राजा था. वैसे तो ठीक था लेकिन थोड़ा हिसाबी था. राज कोष से किए जाने वाले ख़र्च में ध्यान रखता था कि जिस मद में ख़र्च हो रहा है उसके अनुरूप लाभ या परिणाम प्राप्त हो रहा है या नहीं. मतलब कि ख़र्च कोई भी हो वह result oriented होना जरूरी था. आज के आर्थिक शब्दावली में यदि कहें तो राजा Performance Budgeting का विशेषज्ञ था.  राजा के उक्त स्वभाव को देखते हुए यह irony हीं कहा जाएगा कि राजा ने अपने दरबार में प्रतिदिन अध्यात्म और तत्...

शिव विवाह

शिव विवाह  सिवहिं संभु गन करिहिं सिंगारा।  जटा मुकुट अहि मौरू सँवारा।। कुंडल कंकन पहिरे ब्याला।  तन बिभूति पट केहरि छाला।। ससि ललाट सुंदर सिर गंगा।  नयन तीनि उपबीत भुजंगा।।  गरल कंठ उर नर सिर माला।  असिव बेष सिवधाम कृपाला।।  कर त्रिसूल अरु डमरू बिराजा। चले बसहँ चढि बाजहिं बाजा।।  देखि सिवहिं सुरत्रिय मुसुकाहीं।  बर लायक दुलहिनि जग नाहीं।।                      **  (शिव के गण ने अपने स्वामी का श्रृंगार कुछ ऐसा ही किया है जो देखने योग्य है किन्तु उसका बखान करना कठिन है.  उन्होने शिवजी को उनकी जटाओं का हीं मुकुट बनाकर उन्हें पहना दिया है और माथे पर मौरी के रूप में साॅंप को उन्होंने अत्यंत सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा दिया गया है. कानों में कुंडल तथा हाथों में कंगन के रूप में सर्प शोभायमान है,सम्पूर्ण गौर शरीर पर अंगराग के रूप में श्मशान का भभूत अपनी अलग ही छटा बिखेर रहा है. त्रिनेत्र शिव के ललाट पर चंद्रमा एवं सिर पर देवसरि गंगा प्रवाहित है. जनेऊ के रूप में भी सर्प तथा कंठ के मध्य में हला...

रामचरितमानस में पर्यावरणतत्व का दिग्दर्शन

गोस्वामी तुलसीदासजी ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की मूर्ति थे। उनके द्वारा रचित रामचरितमानस एक सर्वांग सुंदर ग्रंथ है जिसके बारे में मान्यता है कि गोस्वामी जी ने इसकी रचना भगवान गौरीशंकर की आज्ञा से किया।  वैसे तो इस ग्रंथ की रचना तुलसीदासजी ने अपने इष्टदेव भगवान श्रीराम के चरित्र का वर्णन अपनी भाषा में कर अपने चित्त को सुख प्रदान करने के लिए हीं किया किंतु इससे भविष्य में होने वाले हुए लोकोपकार का अनुमान कदाचित गोस्वामी जी को भी नहीं रहा होगा।   भगवान श्रीराम के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को केंद्र में रखकर गोस्वामी जी ने जिस तरह से लोकनीति,राजनीति कर्म,धर्म,अध्यात्म,योग,दर्शन,ज्ञान,त्याग,प्रेम और वैराग्य सहित जीवन के विविध पक्षों से सम्बंधित आदर्श मूल्यों एवं तत्वों को उन्होंने इसमें जो सरल,सुबोध एवं सुग्राह्य शैली में सुंदर और सुरूचिपूर्ण ढंग से पिरोया है,उसका दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है. यह उनके विशाल एवं अथाह आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक अनुभवसंचित ज्ञान का दिग्दर्शन कराता है।  ******************************************************* रामचरितमानस में रामकथा के माध्यम से वर्णित जी...