एक शिक्षाप्रद कहानी.
यह कहानी मैंने गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित एक पुस्तक में पढ़ी थी. इस उपदेशप्रद कहानी गीता प्रेस के संस्थापक स्वनामधन्य सेठ ब्रह्मलीन स्व.जयदयाल जी गोयन्दका ने लिखी थी. इसी कहानी को मैंने अपने शब्दों में कतिपय महत्वहीन हेरफेर के साथ लिखने का प्रयास किया है. इसके पढ़ने के उपरांत आजकल के अधिकांश भोगैश्वर्यासक्त कथावाचक या प्रवचनकर्ता जो नाना प्रकार के श्रृंगार कर कथावाचन या उपदेश देने का उपक्रम करते हैं,का यदि सहसा स्मरण हो जाए तो कोई हरज भी नहीं है. *** एक राजा था. वैसे तो ठीक था लेकिन थोड़ा हिसाबी था. राज कोष से किए जाने वाले ख़र्च में ध्यान रखता था कि जिस मद में ख़र्च हो रहा है उसके अनुरूप लाभ या परिणाम प्राप्त हो रहा है या नहीं. मतलब कि ख़र्च कोई भी हो वह result oriented होना जरूरी था. आज के आर्थिक शब्दावली में यदि कहें तो राजा Performance Budgeting का विशेषज्ञ था. राजा के उक्त स्वभाव को देखते हुए यह irony हीं कहा जाएगा कि राजा ने अपने दरबार में प्रतिदिन अध्यात्म और तत्...