बिहारी बाबू से बंगाली बाबू.
बिहारी बाबू से बंगाली बाबू
मेरे बड़े भाई आजकल पटना आए हुए हैं. चिकित्सीय परामर्श के बाद कुछ दिनों में वापस गांव लौट जाएंगे. कार्यालय से वापस घर लौट कर जब भी उनके पास बैठता हूं तो प्रायः कुछ न कुछ सीखने को मिल ही जाता है.
आज आसनसोल उपचुनाव के संदर्भ में चली चर्चा के क्रम में उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को दो तरह का संकट उसे महत्वहीन एवं उद्विग्न कर देता है और वह अपने हीं द्वारा लिए गए तरह-तरह के निर्णय का शिकार हो जाता है.
पहला है-पहचान का संकट और दूसरा-विश्वास का संकट.
ये दोनों संकट आपस में मिलकर एक तीसरा संकट को उत्पन्न कर देता है जिसे हम "निर्णय का संकट" या "decisional-crisis" कहते हैं.इसका परिणाम दूरगामी होता है.
पहचान बदलते रहने से पहचान का संकट उपस्थित होता है और विश्वास बदलने से विश्वास का संकट उपस्थित हो जाता है. इसलिए यथाशक्ति व्यक्ति को न तो अपनी पहचान बदलनी चाहिए चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो और न हीं अपने विश्वास को तर्क के सामने तिरोहित होने देना चाहिए चाहे वह तर्क़ कितना भी अकाट्य क्यों न हो.
इन दोनों की उपेक्षा से हानि है.
गीता में भी कहा गया है- स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:
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उन्होंने आगे कहा-
जहां तक मेरी जानकारी है और लोग भी भले स्वयं को बिहारी बाबू कहें लेकिन "बिहारी बाबू" तो एकमात्र शत्रुघ्न सिन्हा हीं हैं. उन्हें हम क्या बिहार और बिहार से बाहर सभी उन्हें बिहारी बाबू हीं कहते हैं और इससे उन्हें क्या हर बिहारी को सुनकर प्रसन्नता होती है. यह बिहारी पहचान से जुड़ा मामला हो जाता है.
फिल्मी दुनिया में बिहार के अनेक कलाकार आए किंतु बिहारी बाबू तो एकमात्र अपने शत्रु भाई को हीं कहा जाता है.
समूचा बिहार यह जानकर और सुनकर खुश होता रहा है. फिल्मी दुनिया में उन्होंने बिहार को एक पहचान दिलाया; ये सर्वमान्य तथ्य है.
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अमिताभ बच्चन भले हीं सफलता के सोपान पर उनसे दो कदम आगे हों किन्तु फिल्मी दुनिया उन्हें "यूपी बाबू" नहीं कहती. या फिर यूपी की जनता हीं ने उन्हें कभी "यूपी बाबू" कह सम्मानित नहीं किया. यह प्रतिष्ठा मात्र शत्रु जी को हीं प्राप्त हुआ. उन्हें बिहार की जनता का शुक्रगुजार होना चाहिए.
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खैर ये लिखने का मकसद मेरा यही है कि व्यक्ति पद के लालच में अपनी पहचान और अस्मिता को भी दाव पर लगा देता है.
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आज "बिहारी बाबू" बंगाल में "बंगाली बाबू" बन चुनाव लड़ रहे हैं.
उन्हें शुभकामना.
राजीव रंजन प्रभाकर.
१२.०४.२०२२.
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