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Showing posts from July, 2021

स्नान-भोजन~ दान और प्रभु स्मरण.

स्नान-भोजन ~ दान और प्रभु स्मरण. शतं विहाय भोक्तव्यं सहस्त्रं स्नानमाचरेत्  लक्षं विहाय दातव्यं कोटिं त्यक्त्वा हरिं स्मरेत् .                                                (सुभाषितम्)  A hundred engagements counts little before a plate of meal that helps us sustain; hence a person must give the first priority to that plate of meal placed before him leaving all other vocations/avocations aside. Rather he should keep sitting & waiting for the plate to come and welcome the food with full respect and obeisance as matter of Gratitude to God's Grace.                 A refreshing bath renders enjoying,energising and for some enlightening experiences. It's more important than thousand types of Works in Progress (WIP) or Works in the waiting (W/w).         The indulgence of 'Giving' must take ...

हे अनंत!

हे अनंत!  तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ; तू है महासागर अगम, मैं एक धारा क्षुद्र हूँ. तू है महानद तुल्य तो मैं एक बूँद समान हूँ; तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ.                             - गया प्रसाद शुक्ल'सनेही.

रानी मंदोदरी (Queen Mandodari)

राक्षसेन्द्र रावण की पत्नी मंदोदरी के बारे में रामचरितमानस को पढ़ने पर जितना कुछ जान सका हूँ, वह अत्यंत प्रभावित करने वाला है. मै अब तक जितने भी धार्मिक ग्रंथों को पढ़ सका हूँ, मुझे ऐसे बहुत कम उदाहरण मिले हैं जहाँ पत्नी अपने पति को कोई गलत कदम उठाने से मना करती हो-वह भी बार-बार. पत्नी द्वारा अपने पति को किसी गलत कार्य करने से रोकने टोकने सम्बंधी दृष्टांत धार्मिक ग्रंथों में कम हीं दिखते हैं.            यों तो सुग्रीव की पत्नी तारा ने भी अपने पति को बालि से युद्ध को रोका था किंतु मंदोदरी की तुलना तारा से नहीं हो सकती यद्यपि दोनों हीं पंचकन्यायें कहलाती हैं. मंदोदरी को जब भी ऐसा अवसर प्राप्त हुआ,उसने रावण से हमेशा ये विनती की कि "नाथ! श्रीराम को साधारण मनुष्य समझने की भूल न कीजिये. उनसे वैर मोल न लीजिये. उनकी पत्नी को आदरसहित विदा कर दीजिए.इसी में आपका और सम्पूर्ण निसिचर कुल की भलाई है.श्रीरामचन्द्रजी विश्वरुप जगदीश्वर हैं जो नर रूप धारण कर पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं.मेरी बात मानिये स्वामी!." हतभाग्य रावण यदि जरा भी अपनी पत्नी की सलाह पर कान देता तो उसकी ये द...

खुदकफील बनिए.

सभी ममालिक अपने मफाद को मरकज़ में रखकर हीं किसी पॉलिसी को अख्तियार करते हैं. लेकिन इसे खुदगर्जी की हद कहना हीं मुनासिब होगा जब दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क किसी दूसरे मुल्क में फैले दहशतगर्दों का सफाया करने का न केवल बीड़ा उठाये बल्कि दहशतगर्दी से मोतासिर उस मुल्क को रिबिल्ड (rebuild) करने का भरोसा भी दिलाये; गोया अपना मकसद पूरा होने पर यकायक अपनी फौज को बुला ले और नतीजतन वहाँ की अवाम को उन दहशतगर्दों के हाथ का एक बार फिर खिलौना बनने को मजबूर होना पड़े.                                     *****          जी हाँ, मैं अमरीका की बात कर रहा हूँ.9/11 मंजर के बाद तिलमिलाया अमरीका आज से तकरीबन बीस साल पहले इस अज्म के साथ कि उसे ओसामा जिन्दा या मुर्दा चाहिए हीं चाहिए,अफगानिस्तान में दाखिल हुआ. दुनिया को उसने ये भी भरोसा दिलाया था कि वो अफगानिस्तान में दहशतगर्दी का सफाया तो करेगा ही साथ में अफगानिस्तान की तरक्की के लिए वह हर एक वाजिब एकदामात करेगा जो मुल्क को तालिबानी कदामतपसंदी ...

चलते चलिए;चलते चलिए.

गच्छन् पिपिलिको याति योजनानां शतान्यपि । अगच्छन् वैनतेयः पदमेकं न गच्छति ॥ *************************************************  भावार्थ : लगातार चल रही चींटी सैकड़ों योजनों की दूरी तय कर लेती है, परंतु न चल रहा गरुड़ एक कदम आगे नहीं बढ़ पाता है. *************************************************              इसलिये चलते रहिये. चलते रहिये.  क्या घोर घाम और क्या शीत!            पथरीले,कटीले,रपटीले,सर्पीले,नुकीले (किंतु कभी-कभी चमकीले भी)रास्ते को नापते चलें.                   चरैवेति चरैवेति. मंजिल का क्या है?  जब मिलना होगा वह खुद चल के चली आयेगी.                                                 राजीव रंजन प्रभाकर. १८.०७.२०२१.

मुनि वाल्मीकि की प्रेरणा और श्रीराम का चित्रकूट वास.

************************************************ भगवान श्रीराम सब कुछ जानते थे तथापि मनुष्योचित व्यवहार के साथ उन्हें वह सब करना था जिसके लिए वे इस धरा-धाम पर पधारे थे. इसीलिए तो उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. वनगमन मात्र एक माध्यम था;इस यात्रा का उद्देश्य विप्र,धेनुरूपाधरित्री,सुखार्थी सुरसमूह एवं तपश्चर्या में लीन मुनिसमाज से छिपा नहीं था. इसी की प्रतीक्षा में सभी थे भी.  ************************************************ अयोध्याकाण्ड का एक प्रसंग लेते हैं.  सानुज लक्ष्मण एवं सीताजी सहित भगवान का वनगमन हेतु अयोध्या से प्रस्थान हो चुका था. इस क्रम में प्रभु तीर्थराज प्रयाग आये.वहां उन्होंने भरद्वाज मुनि के दर्शन किये. तदोपरांत यथोचित सम्मान एवं आदर के साथ मुनि ने उन्हें आगे की यात्रा के लिए विदा किया. मार्गदर्शन हेतु मुनि श्रेष्ठ ने अपने कई शिष्यों को साथ लगा दिया. प्रभु की लीला देखिए. जो अखिल ब्रह्माण्ड के मार्गदर्शक हैं,उनका मार्गदर्शन मुनिशिष्य वेदपाठी बटुकगण कर रहे थे. अस्तु.  उनके पीछे कुछ दूर चलने के बाद भगवान ने उन्हें आदर के साथ एवं कृतज्ञतापूर्वक वापस भरद...