मन्दी के बीच कार्पोरेट मुस्कान

सभी लोग कह रहे थे हमारी अर्थव्यवस्था मन्दी के चपेट में आ गयी है। अर्थशास्त्री कहने लगे बड़ा गजब हो गया। ग्रोथ रेट पांच प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। जल्द अगर कुछ नहीं किया गया तो इकोनॉमी का रसातल में जाना तय है। क्या कहे? बैंक मर्जर! इ सब से कुछ नहीं होनेवाला है। इमिडियेट रिलिफ चाहिए इमिडियेट! लोंग टर्म मेजर अपना  बाद में करते रहिएगा। यहां कम्पनियां सकते में है। नयी नौकरी की बात छोड़ दीजिए यहां जो नौकरी बची है वह भी जा रही हैं। फलां कम्पनी ने अपने दस हजार कर्मचारियों की छंटनी कर दी तो ओटोमोबाइल सेक्टर बिक्री नहीं होने का रोना रो रहे हैं।कार की बिक्री को मानो अर्थव्यवस्था के हेल्दी या अनहेल्दी होने का पैमाना मान लिया गया। ओटो मोबाइल कम्पनियां तो उत्पादनशून्य दिवस मनाने में लग गयी। एक उद्योगपति ने यहां तक कह डाला कि पचपन साल में उन्होंने ऐसी स्थिति नहीं देखी।बताइए साहब इ सब्सिडी सब में जो पैसा सरकार खरच करती है उससे इकनॉमी को क्या फायदा, यही पैसा सरकार इन्डस्ट्री में लगाये तो अर्थव्यवस्था में चार चांद लग जाये। इकनॉमी कब की हमारी 5 ट्रिलियन डॉलर हो गई रहती। आम जनता को छूट देकर हम पर बोझ डाल दिया गया है! इ कोई जस्टीफिकेशन हुआ!
देखिये कौकस उद्योगजगत का। एक झटके में 10 से 15 प्रतिशत टैक्स की छूट! न्यूनतम वैकल्पिक कर भी खत्म, केपिटल गेन टैक्स खत्म, एंजिल टैक्स खत्म और न जाने क्या क्या! अब किसी को कोई शिकायत नहीं। मानो एक झटके में मंदी खत्म। इसे कहते हैं उद्योगजगत (अमीरों) की तिलिस्मी ताकत। तर्क ये कि इससे नौकरियां नहीं जायेंगी तो मुलाजिम के पास पैसा रहेगा तो वह खर्च करेगा। बाजार में तरलता आयेगी, मांग बढ़ेगा।कम्पनी को कम टैक्स देने होंगे तो वह ज्यादा निवेश कर सकेगी। वगैरह वगैरह।
काश इतनी हीं शिद्दत से सरकार कृषि जगत की परेशानी को महसूस करती! या फिर नौकरीपेशा के कशमकश को समझती! उसे ये 10 से 15 प्रतिशत कर में रियायत पाने के लिए दस जनम लेना पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं।लाॅबी है साहब लाॅबी, सरकार कोई भी हो चलाते इसे पर्दे के पीछे ये लोग हीं हैं।
खैर, बीमारी के इलाज का अपना अपना नजरिया! बाकि हम कोई अर्थव्यवस्था के डाक्टर तो है नहीं। मुझे लगता है कल से अब मन्दी की कोई चर्चा नहीं करेगा, करेगा भी तो उपर उपर से दिखावा के लिये, मकसद तो पूरा हो चुका। कुछ और कसर अगर रह गया है तो टैक्स होलीडे की आगे कोई घोषणा से वह भी पूरी हो सकती है।
राजीव रंजन प्रभाकर.
21.09.2019.

Comments

Popular posts from this blog

साधन चतुष्टय

न्याय के रूप में ख्यात कुछ लोकरूढ़ नीतिवाक्य

भावग्राही जनार्दनः