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Showing posts from July, 2019

Tweaking the RTI Act through Amendment.

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In the year 2005 the Right to Information Act was enacted as well as enforced. This enactment enabled the general public to demand by right from public authorities  the information available with them.If the information saught is held by or is under the control of the public authority and such information as saught is otherwise not exempted from it being furnished, the Act makes the Public Information Officer responsible for supplying such information within 30  days from the date of filing application for the purpose. If the applicant is not provided with the information saught or the information furnished is not to his satisfaction the matter may be raised by way of appeal before the first appellate authority. There is provision of second appeal also under the Act. The Central Information Commissioner(CIC), depending upon the nature of information saught, acts as the Second Appellate Authority. The term of office and conditions of service of the Central Information Comm...

रामचरितमानस में मानसरोग की व्याख्या

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रामचरितमानस की रचना कर गोस्वामीजी ने पीड़ित मानवता का महान उपकार किया है। इस ग्रंथरत्न के उत्तरकांड में वर्णित काकभुशुण्डि-गरूड़ संवाद के रुप में मानसरोग की व्याख्या जो गोस्वामीजी द्वारा किया गया है उसी को समझ कर चिंतन करने के उद्देश्य से इसे संक्षेप में वर्णन करना प्रस्तुत लेखन का अभीष्ट है। अगर इस मानसरोग को तत्वतः समझ लिया जाय तो भोगाकर्षण के ज्वर से पीड़ित-कम्पित व्यक्ति की भोगपरायणता नाश तक को प्राप्त हो सकता है, इसमें संदेह नहीं है। इस महान लाभकारी संवाद में मानसरोग की व्याख्या का विशेष स्थान और महत्व है, खासकर उनके लिए जो इसे समझकर तदनुसार रोगमुक्त होना चाहते हों। शरीर के तीन विभाग माने गये हैं - स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर। किन्तु यदि रोग के संदर्भ में कहा जाय तो इसका अधिष्ठान स्थूल और सूक्ष्म शरीर हीं है। स्थूल शरीर के रोग बहुत हीं आसानी से दिख जाते हैं, समझ में भी आ जाते हैं लेकिन सूक्ष्म शरीर की व्याधि दीखती नहीं है, सहसा उसे पहचान कर उसका विभाग करना गोस्वामीजी के हीं वश की बात थी जिन्होंने मन के अंदर निवास करनेवाले इन रोगों की तुलना स्थूल शरीर में होने वाले रोगों से क...

भावावेश और हमारे संकल्प

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" मैं आज से सिगरेट नहीं पियुंगा, पान नहीं खाऊंगा, अमुक को आज के बाद फोन नहीं करूंगा, मद्यपान नहीं करूंगा, मैं आज के बाद वहां कभी नहीं जाऊंगा, आज के बाद उससे बात नहीं करूंगा, मैं आज से मीठा नहीं खाऊंगा" इत्यादि। इस तरह के संकल्प या निर्णय यदि हम आवेश में आकर लेते हैं तो प्रायः यही देखा गया है कि हम उस निर्णयपर कायम नहीं रह पाते हैं और जल्दी ही उस निर्णय की उपेक्षा कर वही कार्य कर बैठते हैं जिसके नहीं करने सम्बंधी संकल्प हमने कुछ दिन पहले लिया था। हम सभी को इसका अनुभव है कि किस तरह शीघ्र हीं हमारी परिस्थिति या चित्त की दुर्बलता हमें हमारे ऐसे निर्णय को विफल कर देती है। जानते हैं इसका कारण क्या है? मुझ जैसे सीमित बुद्धि वाले की दृष्टि में इसका साधारण सा कारण हमारे भीतर का अहंकार है जो अनुकूल परिस्थिति पाकर हमें ऐसे निर्णय लेने को प्रेरित करता है। ये निर्णय वास्तव में कोई निर्णय न होकर हमारा मनोवेग मात्र है जो उद्वेग के रूप में बाहर निकलता है जिसे हम दम्भ से अपना "निर्णय" या "संकल्प" कहते हैं। लेकिन यदि यही निर्णय स्वस्थ चित्त होकर लिये जायें तो ये दीर्घक...

एकादशी-व्रत की लोकमान्यता

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अभ्यंतर शौच के लिए यह आवश्यक है कि समय समय हम अपने चित्त की मलिनता, चंचलता को दूर करें।ठीक उसी प्रकार जैसे हम रसोई में प्रयुक्त पात्रों को हम बाहर से तो साफ करते हीं हैं, भीतर से भी उसकी सफाई मनोयोग से करना आवश्यक हो जाता है ताकि बर्तन के भीतर भी गंदगी न रहे।अनुभव यही कहता है कि बर्तन की अंदरूनी सफाई का महत्व अधिक है। बाहर साफ रहते हुए यदि बर्तन की भीतरी गंदगी बरकरार रहे तो ऐसी सफाई का कोई महत्व उपयोग की दृष्टि से नहीं रह जाता। हां, बर्तन की ऐसे बाहरी सफाई से दूसरे को कुछ देर के लिए भ्रमित या आकर्षित जरूर किया जा सकता है किन्तु इसका परिणाम अंततः उपहास हीं है। देखा जाय तो हमारा शरीर भी तो एक बर्तन ही है। हमारा क्रोध, अहंकार, तृष्णा, ईर्ष्या, द्वेष, अमर्ष, घृणा, भोगाकर्षण-भोगासक्ति के वशीभूत अनिष्ट चिंतन भीतरी गंदगी के रुप में हमारे शरीररुपी वर्तन में व्याप्त है। इसी भीतरी गंदगी की सफाई को शास्त्र में अभ्यंतर शौच कहा गया है। अभ्यंतर शौच के साधन के रूप में व्रत एवं उपवास की उपयोगिता निर्विवाद है। सनातन हिन्दू धर्म में व्रत एवं उपवास का बड़ा हीं महत्व है। ये दोनों साधनों का आश्रय आत्म...

Budget 2019-20;No, it's Bahi-Khata

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To many the Budget is development oriented while for others it is directionless. Some call it Policy Document or Vision Statement whereas others say it is disappointing. Call it what you will, the fact is that it is simply an Annual Financial Statement of the Government. People of the country happen to know through this the priorities of the government. It provides clue with respect to the matter, issue and items the government intends to solve or strengthen by taking recourse to financial allocation. It goes without saying that money is the primary requirement for both sustenance or change. This budget has belied expectations of sections like middle and service class people, students, professionals to mention a few. The Finance Minister should have also shown concern for such people who also voted this government to power. 5 trillion economy roadmap, clichés like nari to narayan, annadata to urjadata, Rs. 70000 capital infusion, 1.5 lakh additional tax deduction on interest for...

गहना कर्मणो गतिः

स्वल्पज्ञान के आधार पर इस पर कुछ लिखना अथवा कहना सर्वथा अनधिकार चेष्टा है। ऐसा होते हुए भी यदि हम कहें कि कर्म स्वरुप से भले हीं दिख जाय, बल्कि सहज दिखे, समझ में भी आ जाये किन्...