चित्तशुद्धि के उपाय

सबसे पहले तो यह क्षमायाचना कि उपायरूपी इन पंक्तियों को लिखने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि लिखनेवाला अपने चित्त को शुद्ध कर चुका है। यदि ऐसा नहीं है तो इसका कारण यही है कि चित्त की शुद्धि तब तक नहीं हो सकती जब तक पूर्वजन्मकृतपुण्यवशात हमारा ह्रदयाकाश बुरे और अनावश्यक संकल्परूपी मेघ से मुक्त न हो जाय। अंतःकरण में उत्पन्न ऐसे भाव या चिंतन जिससे दूसरे को अहित पहुंचे या पहुंचने की सम्भावना हो, को हम बुरा संकल्प कह सकते हैं। जिसका वर्तमान से सम्बंथ न हो, जिस संकल्प को पूरा करने की योग्यता या शक्ति न हो, यदि शक्ति या योग्यता हो तो भी वर्तमान में उसे पूरा करना आवश्यक न हो या सम्भव न हो, ऐसे संकल्पों को अनावश्यक संकल्प कह सकते हैं। अनावश्यक संकल्प को मात्र कालक्षेप का हेतु समझना चाहिए। अंग्रेजी का Daydreaming इसका पर्याय है। बुरे और अनावश्यक संकल्पों का त्याग चित्तशुद्धि का पहला उपाय है। इसकी निवृत्ति हो जाने पर चित्त में जो भले और आवश्यक संकल्प उठते हैं उसकी पूर्ति अपने आप प्रायः हो जाती है। भले संकल्प उनको कहते हैं जिनमें किसी का हित या प्रसन्नता निहित हो।आवश्यक संकल्प उनको कहते...