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Showing posts from April, 2024

چند غور کرنے لایک باتےں

ہر انسان کو روز تنہائی میں کچھ دیر بیٹھ کر اپنے کردار و کارکردگی پر غور کرنا چاہیے۔ میرے حساب سے جن باتوں پر غور کرنے کی ضرورت ہے وہ حسب ذیل ہے - ١. کیا اس نے اپنے کسی الفاظ سے کسی کا دل تو نہیں دکھایا؟  ٢. کیا اس کے کسی کام سے کسی شخص کو نقصان تو نہیں پہنچ گیا؟ جان بوجھ کر اگر نقصان پہنچانے کی کوشش کی گئی تو یہ اور بھی برا ہے۔ اس گناہ کی معافی ملنا بہت مشکل ہے۔ ہاں! اس کا انجام اپر والا جلد دے سکتا ہے۔ ٣. اگر اسنے کسی شخص سے کوئی وعدہ کیا ہو تو اسے پورا کرنے میں وہ کہاں تک کامیاب ہو پایا ؟ اگر کسی خاص وجہ سے اسے پورا کرنا اس کے اختیار کے باہر ہو گیا ہو تو اس شخص سے سچے دل سے افسوس ظاہر کر اس مابین معذرت عرض کرے۔ یہ بھی واضح رہے کہ وعدہ کر اس وعدے سے مکر جانا بہت خراب چیز ہے ۔ ٤. کیا کوئی ایسا موقع خالق نے اسے دیا جس میں وہ کسی غریب اور لاچار کی مدد کرنے کے قابل ہونے کے باوجود اس نے اس کی مدد نہیں کی۔ اس کے لیے وہ سچے دل سے معافی بھگوان سے مانگے اور دوبارہ ایسا موقع فراہم کرنے کی فریاد کرے۔ کیونکہ بھگوان بار بار یہ موقع نہیں دیتے۔ ٥.واضح رہے کہ آپ جتنا ان باتوں کو عمل میں لاینگے ات...

दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य.

आज हनुमान जयंती है. आज इस अवसर पर उपरोक्त प्रसिद्ध श्लोकांश के सहारे हनुमत् चर्चा कर आनंद प्राप्ति का उद्योग प्रस्तुत निम्न पंक्तियों के सहारे किया गया है जिसे मैंने आज से लगभग दो वर्ष पूर्व मैंने लिखी थी. यह लेखन रामचरितमानस एवं बाल्मीकि रामायण में वर्णित प्रसंग पर आधारित है; किंतु कतिपय महत्वहीन हेरफेर के साथ. **************************************************** पटना रेलवे स्टेशन के समीप स्थित प्रसिद्ध महावीर मंदिर की दीवार पर यदि आपने ध्यान दिया होगा तो निम्नलिखित श्लोक को एक जगह लिखा अवश्य देखा होगा- दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य: रामस्याक्लिष्टकर्मण:। हनूमाञ्शत्रुसैन्यानां निहन्तामारूतात्मज: ।। ******************************** हनुमान ने कहा - माता मुझे बड़े जोर की भूख लगी है. अशोक वाटिका में ऐसे सुंदर-सुंदर पके फलों को देख मेरी क्षुधा और बलवती हो गई है; माते! मेरे मुंह में पानी आ रहा है. आप आज्ञा दें तो मैं इन सुस्वादु फलों को खाकर अपने पेट की ज्वाला को शांत कर दूॅं.  सीताजी- बेटा तुम कैसी बातें करते हो? तुम्हें बुद्धि नहीं है क्या? दुष्ट रावण ने इस बाग की रखवाली का जिम्मा अपने राक्षस...

हनुमत् चर्चा

आज हनुमान जयंती है. इसलिए आज हनुमत् चर्चा हीं प्रस्तुत लेखन का अभीष्ट है. ******************************************************* आज जिसके पास जो गुण है या जो कुछ अच्छा है,वह उसी को प्रदर्शित करने में-दिखाने में बीता जा रहा है.  देखने में यही आ रहा है कि  A۔जिसके पास power है वह बात-बात में अपने power का अहसास कराने हेतु अधीर रहता है.  आफिसर के श्रीमुख से बात-बात पर यही निकलता है –मैं तुम्हें बरबाद कर दूंगा, तुरंत सस्पेंड कर दूंगा, एफ‌आइआर लाॅज करवा दूंगा आदि आदि. B-ज्ञान का दंभ भरने वाले दूसरे को अल्पबुद्धि इशारे से या अपने हाव-भाव से कहते नहीं थकता है कि देखो तुम कितने बेअक्ल हो या तुम चीजों को ठीक से नहीं जानते इत्यादि. C۔किसी के पास कोई कला है तो उसे प्रदर्शित किए बिना नहीं रह सकता.  मतलब कि जिसके पास जो है वह उसी को भजाने-भुनाने की युक्ति में लगा हुआ है. हद तो तब है जब इसे भुनाने-भजाने में वह दम्भ,कपट और पाखंड का सहारा लेकर उसे हासिल करना चाहता है जिसका कि वह पात्र नहीं है.  अस्तु. ******************************************************* लेकिन हनूमान का चरित...

श्रीमद्भगवद्गीता में ॐ कारमूलक श्लोकों की चर्चा.

एक होता है पदार्थ(matter)और दूसरी होती है क्रिया (action). पदार्थ नाशवान है उसी तरह जिस क्रिया का आदि होता है उसका अंत भी निश्चित है.  पदार्थ और क्रिया की इस नाशवान सत्ता के इतर जो कुछ अनुभव, ज्ञान अथवा विवेक से प्राप्य मालूम देता हो उसे अविनाशी अक्षर ब्रह्म (ॐ) का एक अंश मानना चाहिए. यद्यपि ऐसा कहने में भी चक्रक दोष है क्योंकि 'मानना', 'जानना' आदि भी क्रिया के हीं विविध रूप है. कदाचित इसीलिए ब्रह्म को अचिंत्य अरुप अपुरूषेय आदि से समझाने का ऋषि मुनियों ने प्रयत्न किया है. ******************************************************** सनातन धर्म में ॐ को ब्रह्म का पर्याय माना गया है. इसे ओंकार या प्रणव भी कहा गया है.   मनुष्य अपनी सभी पारमार्थिक चेष्टाएं चाहे वह यज्ञ हो,दान हो,तप हो,जप,मंत्र हो जो हो; ॐ से जोड़ कर आरंभ करना चाहता है.  यह उचित ही है. यही कारण है कि सभी मंत्र आदि का जप यदि अन्यथा निर्दिष्ट नहीं किया गया हो तो ॐ के साथ हीं आरंभ होता है. परमात्मा का नाम भी लोग ॐ के साथ लेते हैं यथा ॐ परमात्मने नमः आदि. तथा यह भी कि यज्ञ, दान, तपरूपी समस्त कल्याणकारी क्रियाओं की...

A Letter

                                          Date-14.04.2024. Dear Bhaiyaji,         Sadar Pranam. I know it very well that you are not physically with us since you left two years ago on this date for your heavenly abode; yet your presence in various soft forms is preserved in our memories. These memories will continue to guide as well as inspire me on the way of my uncharted journey that actually life happens to be despite the best planning one may do for it.  ******************************************************* I remember how good you were at mathematics. It was so even while you had come into service and despite having spent many years therein you had not forgotten a range of mathematical formulas of algebra, calculus, co-ordinate geometry, trigonometry etc.  Needless to say that it was a matter of delight, surprise, pride and awe,all at the same time...