Posts

Showing posts from March, 2024

وقت کی ہر شے غلام وقت کا ہر شے پہ راج

میں یہ بات کوئی نیا نہیں لکھ رہا ہوں۔سبھی کو وقت کی اہمیت کا پتا ہے۔دنیا میں اصلی صاحب وقت ہیں ہے جو باقی صاحب ہیں وہ محض صاحب وقت ہیں۔ وقت کے متعلق ساحر لدھیانوی صاحب کی بڑی اچھی نظم ہے۔اسے پیش کرنے کی اجازت چاہتا ہون۔ اس نظم کا استعمال١٩٦٥ میں اسی نام سے بنی ایک فلم "وقت" میں ہوا تھا۔اس گانے کو موسیقی فراہم کئے تھے روی صاحب نے۔ پیش خدمت ہے گانا- وقت سے دن اور رات وقت سے کل اور آج وقت کی ہر شے غلام وقت کا ہر شے پہ راج وقت کی گردش میں ہے چاند تاروں کا نظام وقت کی ٹھوکر میں ہے کیا حکومت کیا سماج *********************************************** وقت کی پابند ہے آتی جاتی رونقیں  وقت ہے پھولوں کا سیج وقت ہے کانٹوں کا تاج وقت کے آگے اڑی ہے کتنی تہزیبوں کی ڈھول وقت کے آگے مٹے کتنے مذہب اور رواج *********************************************** آدمی کو چاہیے وقت سے ڈرکر رہے کون جانے کس گھڑی وقت کا بدلے مزاج *********************************************** سچ میں اگر کوئی بادشاہ ہے تو وقت ہے۔ وہی خدا یا بھگوان کا بڑا بیٹا ہے۔ ہم سبھی کو اسکا احترام و عزت کرنا فرض ہے۔ *********************...

پولیٹکس اور ایڈمنسٹریشن میں فرق

سیاست یا پولیٹکس اور ایڈمنسٹریشن یا انتظامہ میں جو فرق ہے اسے سمجھنے کی ضرورت ہے۔دونوں کا دوران یا کہیے کہ فلڈ بالکل الگ الگ ہے۔ جب اسے آپس میں ملا دیا جاتا ہے تو نتیجہ نقصان دہ ثابت ہوتا ہے۔آج کل کے آفیسر کو اس پر غور کرنے کی درکار ہے *********************************************** پولیٹکس کا کام عوام کی حالیہ اور مستقبل کی  خواہشوں کو جاننے کی کوشش کرنا  اور اس متعلق پالیسی تیار کرنا، نئ نئ سوچ کو بڈھاوہ دینا، ترقی کے منصوبے بنانا، اس پر عملدرآمد کے لیے صورت حال پیدا کرنا وغیرہ ہے۔ اقتدار میں رہ کر یا اپوزیشن میں بیٹھ کر یا پھر الگ الگ پریشر گروپ کے ذریعے اسے اثرانداز کیا جاتا ہے *********************************************** ایڈمنسٹریشن کا کام جو نظام یا سسٹم قایم ہے اسے اچھے طریقے سے چلانے کا ہوتا ہے۔ سسٹم میں جاری لیکیج اور لوپ ہولس کو پہچان کر دور کرنا  یا ختم کرنا انتظامہ کی ڈیوٹی ہے۔ اسکا کام حکومت کے جانب سے تیار منصوبہ کو عملی جامہ پہنانے کی ہوتی ہے۔علاوے اسکے انتظامہ اپنے کام کو مزید بہتر طریقے سے کرنے کی غرض سے بیسٹ اڈمنسٹریٹو پریکٹس (Best Administraitive Pra...

My Childhood Days

My daughter often asks me such questions that put me in a state of being that requires some recollections either from my past or some mental exercises based on personal thoughts,analysis or imagination.  One day she asked me- Father, how were your childhood days?  The answer to this seemingly easy question was rather difficult for me. Nevertheless it was worth attempting as it gave me moments to relive my past with amusement and interest of self-exploration. *******************************************************  It provided me an opportunity to look back into my past to the extent I could stretch my memory upto the period almost four and half decades ago. I said to her that my childhood days were full of fun,if not comfort. It was so because ‘fun’ didn't require much of money while ‘creature comfort’ does.  ******************************************************* I told her that how in a mango orchard popularly called ‘Shanti Babu Gacchi’ just in front of my modest ...

सनातन धर्म की सेवा में आचार्य शंकर, तुलसी एवं गीता प्रेस (कल्याण पत्रिका)का योगदान.

मेरे विचार से कलियुग में सनातन धर्म की सेवा जितना आचार्य शंकर (शंकराचार्य) से हुई है उतना कदाचित अब तक किसी से नहीं बन पड़ा है. १. बौद्ध धर्म और नाना प्रकार के वेद विरोधी पंथों के उत्कर्ष से तत्समय पराभव को प्राप्त हो रहे सनातन धर्म को एक संन्यासी युवक जिसकी अवस्था मुश्किल से २० वर्षों की रही होगी, द्वारा सनातन धर्म की रक्षा के लिए भारतवर्ष के चारों दिशाओं में भ्रमण कर एवं मठ स्थापित कर इसे संगठित करने का जो सद् प्रयास आचार्य शंकर ने किया,वह वाणी का अविषय है.  यह आचार्य शंकर का अद्वैतवाद हीं था जिसने परवर्ती विद्वानों को इसके खंडन मंडन के लिए प्रेरित किया जो फलस्वरूप विशिष्ट-अद्वैत, द्वैताद्वैत आदि सिद्धान्तों के प्रतिपादन का हेतु बना. इसके अतिरिक्त आचार्य शंकर रचित ब्रह्मसूत्र एवं भगवद्गीता पर टीका सनातन धर्म धरोहर रूप में विद्वत परिषद में धारित होकर समादृत है. शंकर ने आत्मस्वरुप के अनुसंधान हेतु वा स्वयं को शुद्ध करने के लिए अथवा किसी लौकिक अभीष्ट की प्राप्ति के लिए हीं सनातन धर्म पथ पर ज्ञान प्रत्यूह को छोड़कर भक्ति भाव से चलने की इच्छा रखने वालों के लिए भी संस्कृत में अनेक कालज...

शंकर वंदना

१.भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम्।।                      ** (श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्रीपार्वतीजी और श्रीशंकरजी की मैं वंदना करता हूॅं,जिनके बिना सिद्ध जन अपने अन्त:करण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते.)                     ** २.वन्दे बोधमयं नित्यं गुरूं शंकररूपिणम्। यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्र: सर्वत्र वन्द्यते।। (ज्ञानमय, नित्य,शंकररूपी गुरू की मैं वन्दना करता हूॅं जिसके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है.)                     ** ३.यस्यांके च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्। सोऽयं भूतिविभूषणं सुरवर: सर्वाधिप: सर्वदा शर्व: सर्वगत: शिव: शशिनिभ: श्रीशंकर: पातु माम्।। (जिनकी गोद में हिमाचल सुता पार्वतीजी, मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा, कण्ठ में हलाहल विष और वक्ष: स्थल पर सर्पराज शेष जी सु...

अखबार में छपे एक इंटरेस्टिंग न्यूज पर

दिन रविवार; जल्दी उठने की कोई हड़बड़ी थी नहीं. बाकि सब दिन १४ पेज के अखबार को महज़ १४ मिनट में निपटा कर आफिस जाने की तैयारी करना होता है,सो आज बाकि दिन वाली बात नहीं थी.  आराम से अखबार पढ़े जा रहा था. बीच में दो बार चाय भी चल गया था. एक बार स्वेच्छा से; दूसरी बार अनुरोध पर. ******************************************************* अखबार के अंतिम पृष्ठ पर जाते-जाते लगभग एक घंटा से ऊपर हो चुका था. अचानक एक खबर पर नज़र जाकर अटक गई. खबर हीं कुछ ऐसी थी. “92 वर्ष की उम्र में पांचवीं शादी रचाएंगे रूपर्ट मर्डोक” आगे लिखा था-मिडिया टाइकून रूपर्ट मर्डोक 92 वर्ष की उम्र में पांचवीं शादी करने जा रहे हैं. अपने से 25 साल छोटी मोलेकुलर बायोलोजिस्ट ऐलेना जुकोवा से उन्होने सगाई की है.खास बात यह भी कि मर्डोक को उनकी तीसरी पत्नी ने जुकोवा से मिलाया था. ******************************************************* गजब!  हम सोचे ई इंटरेस्टिंग न्यूज़ पर पत्नी का क्या रिएक्शन होता है; जरा जानें.  पत्नी जो किचन में खाना बना रही थी,को हम पलंग पर बैठे-बैठे आवाज दिए-सुनिए न! एगो बहुत इंपोर्टेंट न्यूज़ पेपर...

“रामचरितमानस” के यथार्थ रचयिता

वास्तव में "रामचरितमानस" की रचना भगवान शंकर ने की है.  इसके असली रचयिता महादेव भगवान शंकर हीं हैं. रामचरितमानस मुनि भावन।बिरचेउ संभु सुहावन पावन।। रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसम‌उ सिवा सन भाषा।। {यह रामचरितमानस मुनियों का प्रिय है,इस सुहावने और पवित्र मानस की शिवजी ने रचना की. श्री महादेवजी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वती जी से कहा. इसी से शिवजी ने इसको अपने हृदय में देखकर और प्रसन्न होकर इसका नाम सुन्दर “रामचरितमानस” नाम रखा.} रामचरितमानस को भगवान शंकर ने रचकर अपनी अर्धांगिनी उमा को पहली बार सुनाया. इसलिए इसे उमा-शंभु संवाद कहा गया है. [संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनाया।।] ******************************************************* गोस्वामी जी ने अपने उपरोक्त रचित चौपाई में इस तथ्य को सुस्पष्ट कर दिया है कि रामचरितमानस भगवान शंकर की रचना है अर्थात् यह उनकी रचना नहीं है; वे तो इसे अपनी भाषा में लिखकर बाॅंचे भर हैं.  गोस्वामीजी कहते हैं- {सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरन‌उॅं बिसद राम गुन गाथा।। संबत सोरह सै एकतीसा। कर‌उॅं कथा हरि पद धरि सीसा...