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Showing posts from April, 2022

हमर पैघ भाई साहेब-"भैयाजी" : किछु संस्मरण.

हमर पैघ भाई साहेब- "भैयाजी" : किछु संस्मरण ****************************************************    हमर सब संऽ जेठ भाईजी अहि जूड़ शीतल के शरीर त्याग कऽ देलनि. घटनाक्रम एहन जेना ओ अहि दिवसक प्रतीक्षा में होएथ. हमर मां हम सब भाईबहिन के कहने रहथिन कि हुनकर जनम सेहो जूड़ शीतलेक भेल रहैन. चाहे किनको उमैर के हिसाब लगेबाक हो वा जन्मक तिथि मोन राखैक प्रसंग तहिया अंग्रेजी तारीख से वेशी महत तिथ के होएत रहै.                 हमर भाई साहेब सब भाई-बहिन में जेठ छलाह. हम सब भाई-बहिन हुनका भैयाजी कहैत छलिएन.  बचपन में मेधावी एतेक जे मां के मुंह से हम सब भाई-बहिन सुनैत रही जे एक बेर सौंसे "सुंदरकाण्ड" ओ अपन जिला स्कूल में आयोजित तुलसी जयंती'क समारोह में स्मरण से सुना देने रहथिन्ह. ताहि पर हेडमास्टर साहेब अति प्रसन्न भऽ हुनका "रामचरितमानस" पुरस्कारस्वरूप देलखिन्ह छल.                विद्यार्थी'क संदर्भ में हुनक कहब रहैन जो उ अध्ययन के अपूर्ण बुझू जे पढ़लाक पश्चात ओहि पठित विषय पर अपना तरहे किछु लिखब के प्रयास नहिं...

बिहारी बाबू से बंगाली बाबू.

बिहारी बाबू से बंगाली बाबू मेरे बड़े भाई आजकल पटना आए हुए हैं. चिकित्सीय परामर्श के बाद कुछ दिनों में वापस गांव लौट जाएंगे. कार्यालय से वापस घर लौट कर जब भी उनके पास बैठता हूं तो प्रायः कुछ न कुछ सीखने को मिल ही जाता है.  आज आसनसोल उपचुनाव के संदर्भ में चली चर्चा के क्रम में उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को दो तरह का संकट उसे महत्वहीन एवं उद्विग्न कर देता है और वह अपने हीं द्वारा लिए गए तरह-तरह के निर्णय का शिकार हो जाता है.  पहला है-पहचान का संकट और दूसरा-विश्वास का संकट.                ये दोनों संकट आपस में मिलकर एक तीसरा संकट को उत्पन्न कर देता है जिसे हम "निर्णय का संकट" या "decisional-crisis" कहते हैं.इसका परिणाम दूरगामी होता है.              पहचान बदलते रहने से पहचान का संकट उपस्थित होता है और विश्वास बदलने से विश्वास का संकट उपस्थित हो जाता है. इसलिए यथाशक्ति व्यक्ति को न तो अपनी पहचान बदलनी चाहिए चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो और न हीं अपने विश्वास को तर्क के सामने तिरोहित होने देना चाहिए च...

The Difference That Is Noticeable.

Basic difference between the texts of sanatana dharma and books of other religions. *********************************************** I have not studied the Gita in the depth. Only some bare readings of it I can say to have had made of this text.I have not studied texts of other religions either even superficially. My knowledge of matters of religious importance is specious. Even then in the course of discussion with knowledgeable ones and by dint of my smattering knowledge on such matters,I dare to make distinction between the text of Sanatana Dharma and those of others.  Those who are in the "know of things" are expected to correct me by their special knowledge and wisdom. ************************************************** 1.Texts of Sanatana Religion don't compel to be read; much less to repose faith in them. Its reading or study or recital is completely voluntary.                   Whereas texts of other religions enjoin upon its follo...