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Showing posts from October, 2024

बदलाव -एक सोच का

अब से कुछेक माह पहले तक मेरी बेटी महज़ एक कालेज की छात्रा थी. एक सरकारी विभाग में नयी-नयी नौकरी लगने के बाद वह मुज़फ्फरपुर में रहने लगी है. प्रायः अकेले ही वह वहाॅं रहती है; वैसे उसकी माॅं भी मोहवश वहाॅं चली जाती है और कुछ दिन रहकर फिर वापस पटना लौट आती है. उसकी माॅं की स्थिति तो एक पेंडुलम जैसी हो चली है; कभी यहाॅं कभी वहाॅं.    वह शनिवार को आफिस के बाद पटना आयी है. मैं जब आफिस से लौटा तो उसे शाम में घर आया देख बहुत खुशी हुई.  ******************************************** दिन- रविवार  बेटी- पापा चलिए मुझे अपने लिए कुछ ड्रेस खरीदना है. कल सवेरे मुझे वापस मुजफ्फरपुर लौट जाना है  [पहले भी मैं उसके साथ जाया करता था जहाॅं मेरा काम उसके खरीददारी का भुगतान करने तक सीमित था, बांकि ड्रेस पसंद करने का काम उसके खुद का होता था जिसमें मैं चाहकर भी भागीदार नहीं हो सकता था. वजह साफ थी; मेरी पसंद अपनी जेब की सेहत को देखते हुए होती थी जबकि उसकी पसंद को मेरी जेब की सेहत से कोई ख़ास लेना-देना नहीं रहता था. अपनी पसंद ही उसके लिए सर्वोपरि था. दुकान भी हाय-फाय और दुकानदार भी एक ...

सुरक्षित यात्रा करने की चुनौतियां

अब यात्रा करना भी खतरनाक हो चला है. क्या सड़क मार्ग, क्या रेलमार्ग, क्या वायु मार्ग;  कुछ भी सुरक्षित नहीं रह गया है.  और तो और पैदल चलना भी निरापद नहीं है.  सड़क पर पैदल चलो तो पीछे से बंदूक से निकले गोली की रफ्तार से बाइकर गैंग का कोई 'प्रबुद्ध' सदस्य सन्न से जब आगे निकल जाता है तो पता चलता है कि खुशकिस्मती से जान बची.  कब कौन सनक रफ्तार वाहन सवार पीछे से आकर ठोकर मार कर निकल जाए और आप सड़क पर गिर जाएं तथा दूसरा आपको होस्पीटल ले जाने की बजाय या तो रील बनाने में लग जाए अथवा आपको आपके हाल पर छोड़ आगे बढ़ जाए, कहा नहीं जा सकता.                                *** घर में बैठ नहीं सकते; रोजी रोजगार का मामला है.                                *** भारतीय रेल का सुरक्षित रेल यात्रा कराने का दावा खोखला है. रोज कोई न कोई ट्रेन पलट जा रही है; उलट जा रही है. अपनों से मिलने का सपना पाले ट्रेन में सवार लोगों की रेलयात्रा प...

Some Points of Concern On The World Mental Health Day(10th October)

One thing is certain that people die not always out of poverty or accidents or physical diseases. They die out of choice also; called suicide. This suicide is nothing but sheer inability to handle the moment when the stress that an individual undergoes for sometimes from the past reaches its maximum. Maximum in terms of the perception of the individual when he is led to think that dying is better than living. Had it been not so, the professionals whose package happens to be beyond millions of rupees per month would not have taken recourse to finish their lives in the ways that become the headlines of the news every now and then.  ****************************************************** The employers and managers have made the workplace a virtual slaughterhouse where personal freedom and workers' control over their work schedule are slaughtered ruthlessly by the less than competent supervisors and middle level management called Boss/seniors.  Every worker is put under the artific...

एक अंग्रेजी अखबार का रवैया

मेरी बेटी आज मुजफ्फरपुर से पटना आयी है किसी विभागीय बैठक में भाग लेने के लिए. उसके हाथ में एक अंग्रेजी समाचार पत्र “द हिंदू’’ देख मुझे जिज्ञासा हुई कि देखें पेपर में क्या सब है. ****************************************************** बिहार सरकार की सेवा में प्रवेश के साथ हीं मेरा अंग्रेजी समाचार-पत्रों से सम्पर्क क्रमश: छूटता चला गया और उसका स्थान हिंदी अखबार लेता चला गया. अब मेरे लिए हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, प्रभात खबर अखबार हीं काम की चीज़ बन ग‌ए. ब्लाॅक पोस्टिंग के दिनों से हीं इन हिंदी अखबारों से जो सम्पर्क बना वह जिलों में पदस्थापन के दरम्यान भी जारी रहा और दिन-प्रतिदिन प्रगाढ़ होता चला गया.  सरकारी कामकाज की भाषा हिन्दी रहने के अतिरिक्त इसका मोटे तौर एक कारण यह भी था कि हिंदी अखबार स्थानीय समाचारों को भी प्रमुखता से प्रकाशित करते थे जो एक प्रशासनिक अधिकारी के लिए उन स्थानीय खबरों से कम से कम अवगत रहने की सीमा तक अवश्य महत्वपूर्ण होते हैं.  इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हिंदी अखबार सिर्फ स्थानीय महत्व के खबरों के लिए हीं उपयोगी है बल्कि इन अखबारों में राष्ट्रीय एवं ज्वलंत...