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Showing posts from April, 2023

बुद्धिमानी या भगवत्कृपा.

इस सिस्टम में बहुत दांव-पेंच है; फिर भी अभी तक आप इसके शिकार नहीं हुए हैं या उस सिस्टेमेटिक दांव-पेंच से निकल जा पा रहे हैं तो इसे आप इसे अपनी बुद्धिमानी का परिणाम कम बल्कि ऊपर वाले की कृपा ज्यादा समझिए.  **************************************************           सब मान-अभिमान,ज्ञान-विज्ञान,विधान-संविधान इसी धरा पर धरा का धरा रह जाता है और जो होना होता है,वह या तो धर-धराकर हो जाता है या ऐसा होता है कि आपको पता भी नहीं चलता है जब वह हो रहा होता है. **************************************************           उम्र बढ़ने के साथ यदि आप में इस अहसास की वृद्धि होती मालूम दे रही हो कि "मेरे 'हाथ' में कुछ भी नहीं है" तो समझिए आप परिपक्व हो रहे हैं.  यहीं से इस शुभ भाव का उदय होना प्रारम्भ होगा कि "सब कुछ उसी के 'हाथ' में है".     राजीव रंजन प्रभाकर.           २७.०४.२०२३.

अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त

विभूति नारायणजी गांव में रहते थे. अपने जमाने में मेरिट से पढ़ाई कर वे सेकेंड डिवीजन से बीए भी पास किए थे; किन्तु चाह कर भी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर सके. एक दो जगह लिखित परीक्षा पास करने पर इंटरव्यू के लिए बुलावा भी आया. इंटरव्यू देने के बाद कमरे से बाहर चपरासी कह रहा था-अरे ई सब नाटक हो रहा है. सब सीट पर बहाली पहले से फिक्स है.  बात जो भी हो; नौकरी नहीं मिल पाने पर उनके पिताजी ने कहा- कहॉं नौकरी के चक्कर में भटक रहे हो. गाॅंव में हीं हमारे खेती-किसानी में हाथ बटाओ. तब से गांव में हीं रह कर खेती किसानी करने लगे. धीरे-धीरे उसी में रम गए और खुश रहने लगे.शादी तो पढ़ते हीं समय हो गई थी और जैसा कि स्वाभाविक है शादी के साल भर में हीं एक लड़का भी पैदा हो गया. विभूति बताते हैं कि उनके पिताजी ने हीं उसके लड़के का नाम सुफल नारायण रखा था. तब मां-बाप अपने बच्चे का नाम तक अपनी इच्छा से नहीं रख सकते थे.अब जमाना भले कुछ और हो गया हो.   सुफल बड़ा होता गया. कभी-कभी जब मन करता तो पूछ बैठते-बेटा ठीक से पढ़ रहे हो न? इसके आगे फिर कुछ नहीं पूछते.  अवकाश के क्षणों में जब पति, पत्नी और बे...