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Showing posts from November, 2023

سیکھنے کا مزہ

سیکھنے کا جو مزہ ہے اُسے الفاظ میں ہو- ب- ہو بیاں کرنا بہت مشکل ہے ۔آپ چاہے جو کُچھ سیکھ رہیں ہوں سیکھنے کے بعد ایک الگ قسم کا سکون ملتا ہے ۔ بات اگر کوئی نئی زبان سیکھنے کی ہو تو اُسّے رُوحانی خوشی حاصل ہوتے ہے ۔ اسکے علاوہ جب ہم کوئ زبان نیانیاسکھتے ہیں تو ہمارے دماغ کے سبھی شعبے ایکایک حرکت میں آ جاتے ہیں۔ اسکا فائدہ یہ ہوتا ہے کہ دماغ ہمیشہ درست و الرٹ رہتا ہے اورایک لمبی عمر تک سہی طریقےسے کام کرتارہتاہے۔ سیکھنے کی کوئ عمر نہیں ہوت ۔ اسکے لیۓ ریسورس کی کمی اڑے نہیں آتی ہے بشرطِ کے ہمارا جذبہ کمزور ن ہو ۔ راجیو رنجن پربھاکر

भैया'क आशीर्वाद.

हम जतय कत‌उ रहैत रही अपन जनमदिन’क अवसर पर प्रत्येक वर्ष अपन सबसे पैघ भाय “भैयाजी” कऽ फोन कय हुनका सॅं आशीर्वाद अवश्य लऽ लैत छलहुॅं.  आब भैयाजी नहिं रहलाह.  अस्तु आय अपन जनमदिन पर हम घर में भैयाजी सॅं छोट किंतु हमरा सॅं जेठ भाय जिनका हम सबगोटय “भैया” कहैत छिए, तिनका फोन केलहुॅं. सोचलहुॅं जे “भैयाजी”तऽ छैथ नहिं से नहिं तऽ “भैये” के फोन पर गोर लागि के हुनकर आशीर्वाद लऽ लेल जाय.  हमर “भैया” आब सेहो स्टेट बैंक के मैनेजर पद सॅं रिटायर भऽ गेल छथि. ******************************************************* फोन पर  हम- भैया! गोर लगै छी. भैया- खुश रह. कि हाल-समाचार? हम- आय हमर जनमदिन छिए ने ताहि लऽ कऽ भोरे भोर फोन हम केलहुॅं अछि. भैया-वाह! वाह! आनंद रह. एकटा बात पूछैत छियो से कहऽ हम-पुछू. भैया- नीन(नींद)होयऽ नै? हम-हॅं खूब नींद हो‌इय. सात-आठ घंटा रोज सुतय छी. भैया-तखन पचैयो में कोनो दिक्कत तऽ नहिए होयत हेतऽ? हम- नहि. कोनो दिक्कत नहीं होय यऽ. काल्हियो आधा किलो मोटका छाल्ही वला दही चूड़ा संग खेने छलहुॅं. हफ्ता में एक बेर माछो-भात भैये जाय छै. पचै(digestion)में ते कोनो समस्या नहीं ब...

"अभाव,""प्रभाव" एवं "स्वभाव".

ट्रेन के सेकेंड क्लास के कूपे में बैठा हूॅं. पटना जा रहा हूॅं. कल दीवाली का त्योहार है. पटना में पत्नी को छोड़ कर और कोई नहीं है,बेटी भी पढ़ाई के सिलसिले में बाहर हीं है. पर्व-त्यौहार के आकर्षण, उमंग और उत्साह का उम के साथ धीरे-धीरे कम होता जाना अनहोनी बात नहीं है. यही त्योहार था जब एक महीना पहले से ही पाईं-पाई जमा कर पटाखा खरीदना होता था;उसे घर के लोगों से छिपा कर छत पर धूप में सुखाना होता था, वगैरह-वगैरह. फिर पटाखा फोड़ने का कम्पिटीशन! हम हीं क्या; हमारे समय के लड़कों का कमोवेश वही कार्यकलाप था जो मैंने उपर कहा.  आज की तरह टीवी-मोबाइल-कम्प्यूटर वगैरह तो था नहीं जिसमें बच्चे जनमते हीं डूबे रहते हैं. ******************************************************* ट्रेन में कोई खास भीड़ नहीं थी. सीट भी आसानी से मिल गई. त्योहार की वजह से लगता है जिन्हें घर जाना था इससे पहले जाने वाली गाड़ी से निकल ग‌ए.  ट्रेन में रोज की सवारी करने वाले हीं अधिक थे. उनकी संख्या भी कुछ खास नहीं थी. वैसे दैनिक यात्री के लिए यह इंटरसिटी एक्सप्रेस बहुत उपयोगी है. मुझे भी जब सप्ताहांत में जब कभी पटना जाना होत...