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Showing posts from January, 2023

Coaching institutes-have they overpowered our education system?

Whenever I go to my office in the morning, it is amusing and heartening as well to see roads flocked by dozens of youngsters with bags on their backs returning from somewhere I didn't know. I ask my driver- are they returning from school? Is it not the usual time to go there? Why are they returning from there? He replies- नहीं सर! इ बच्वन सब कौचिंग कर के न आ रहा है. मेरा बेटा भी उहे कौचिंग में न पढ़ता है. अबकी बार नौ कलास में गया है. क्या करें स्कूल में त कुछो पढ़ाई होता नहीं है.  इ जीला का इहे न टाॅप का कौचिंग है सर.       (No sir; these boys and girls are returning from coaching. My son also studies in that coaching center which is the number one coaching center in this district. What could be done when in school teachers do not teach.)         I muttered in surprise- Coaching for class 9! ******************************************************* In our times coaching centers or institutes were not many. In fact,if I am to tell the truth there was...

रामचरितमानस महाकवि सूर की दृष्टि में

कहा जाता है कि एक बार बादशाह अकबर ने अपने नवरत्न में से एक रहीम कवि(अब्दुर्रहीम खानखाना) को तुलसीदास के पास तुलसी को अपना मनसबदार बनाने की बादशाह की इच्छा का संदेश लेकर भेजा. जानते हैं तुलसीदासजी ने बादशाह को अपने मित्र रहीम के मार्फत क्या उत्तर भिजवाया? हम चाकर रघुवीर के पटौ लिखो दरबार। तुलसी अब का होहिंगे नर के मनसबदार।।                                            ~Tulsidas. कहने का आशय कि तुलसी तो रघुवीर का चाकर है;जब तुलसी को राम ने हीं अपने दरबार का पट्टा लिख दिया है तो आदमी(अकबर) के दरबार का पट्टा लिखवा कर (मनसब लेकर) तुलसी क्या करेगा? उपरोक्त घटना से पहले भी एक घटना घट चुकी थी. जब तुलसीदास की कीर्ति बहुत फैल चुकी थी तो अकबर ने अपने दरबार में बुलाकर कोई चमत्कार दिखाने को कहा था और तुलसी ने मना कर दिया था.  तुलसीदास ने साफ कह दिया -मैं कोई चमत्कार नहीं जानता.  फलस्वरूप तुलसीदास को बन्दी बना लिया गया.  बाद में जब बादशाह को अपनी भूल का अहसास हुआ तो तुलसी को कारा...

रावण का अंत

 राम रावण युद्ध का एक प्रसंग है-  प्रभु अपने निषंग से एक से एक बाण निकालकर युद्धस्थ-सन्नद्ध रावण की ग्रीवा को लक्ष्य कर सरसंधान करते हैं और क्षणमात्र में रावण का मस्तक धर से विलग हो दूर रणभूमि में जा गिरता है.  परन्तु यह क्या! अगले हीं पल रावण के रूण्ड पर नवीन मुंड का उदय हो जाता है और रावण का राम के प्रति उपहासमय अट्टहास से रणभूमि गूंज उठती है.   यह देख श्रीराम अपने कोदण्ड एक बार पुनः खींच कर रावण पर बाण से प्रहार करते हैं; रावण का न केवल दसों शीश बल्कि बीसो भुजाएं भी प्रभु के बाण से कटकर दूर जा गिरती हैं किन्तु अगले हीं पल उन भुजाओं और सिर का रावण के धर में सृजन हो जाता देख प्रभु हतप्रभ हैं. **************************************************** भगवान प्रहार पर प्रहार किये जा रहे हैं. परिणाम है कि भगवान के बाण से भुजाओं और शीश के काटे जाने से पूरा रणक्षेत्र पटा पड़ा जा रहा है किन्तु तत्क्षण हीं नवीन भुजाओं और नवोदित मस्तक से लैस रावण पूर्ववत चुनौती देता हुआ अट्टहास करते नहीं थकता. युद्ध में समक्ष उपस्थित दुर्वध्य रावण है कि मरता हीं नहीं.      ...