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Showing posts from January, 2025

ये ग़लत बात है.

तुम चले गए वो ठीक है;          लेकिन उदासी यहाॅं छोड़ गए                          ये ग़लत बात है. तुम चले गए वो ठीक है;       यहाॅं की रौनक को भी लेते ग‌ए                        ये ग़लत बात है. तुम चले गए वो ठीक है;        अपनी यादों के दामन छोड़ गए                           ये ग़लत बात है.  तुम चले गए वो ठीक है;              हमको बता कर नहीं ग‌ए                        ये ग़लत बात है.  तुम चले गए वो ठीक है;              हिसाब अधूरा छोड़ गए                         ये ग़लत बात है. तुम चले गए वो तुम्हारी या रब की मर्ज़ी थी  पुकारने प...

कभी ख़ुद के सर भी इल्ज़ाम लिया करो

हमेशा ख़ुद को हीं न सयाना समझा करो  कभी ख़ुद के सर भी इल्ज़ाम लिया करो                *** जो पाओ कभी ख़ुद को बाअख़्तियार  तो 'अमल को मुंसिफाना रखा करो  जो मिले मौक़ा' मदद का  उसका इस्तक़बाल किया करो                ** वो हो हबीब या फिर रक़ीब हो बिना गिला के मिला करो कोई काम आए या न आए सबके लिए दु'आ करो               ** फ़ूटे घड़े सी ज़िंदगी से  'उम्र बहती जा रही मुख़्तस़र से इस हयात को  बे वजह न ज़ा'ए करो              *** हमेशा ख़ुद को हीं न सयाना समझा करो  कभी ख़ुद के सर भी इल्ज़ाम लिया करो                                  ~ राजीव रंजन प्रभाकर  ----------------------------------------  ہمیشہ خود کو ہیں نہ سیانہ سمجھا کرو کبھی خود کے سر بھی الزام لیا کرو                 ...

विद्या धन और शक्ति का उपयोग सज्जन और दुर्जन किस तरह करते हैं?

विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति: परषां परपीड़नाय। खलस्य साधोर्विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।। ऐसा नहीं कि विद्या,धन या फिर शक्ति इत्यादि केवल सज्जन को हीं प्राप्त रहते हैं.  दैवयोग से अथवा पूर्व जन्म के पुण्य एवं संस्कार के चलते ये कुटिल,दुर्जनों तथा दुष्टों को भी प्राप्त होते देखे जा सकते हैं.  खल प्रकृति के जो लोग होते हैं वे विद्या का उपयोग विवाद करने में,धन का उपयोग अपने दम्भ के पोषण तथा स्वार्थ की पूर्ति में तथा शक्ति का दुर्विनियोग दूसरे को परेशान करने एवं सताने में किया करते हैं. किंतु वहीं इसके विपरीत एक साधु पुरुष अपनी विद्या का उपयोग सत्कर्म में, धन का उपयोग सुपात्रों को दान देने में तथा शक्ति का उपयोग दुर्बलों की रक्षा एवं सहायता करने में करता है.  भावानुवाद- राजीव रंजन प्रभाकर. १२.०१.२०२५.

जो जैसा है मेरे लिए सब है ठीक.

अब चाहे तू जितना भी ढ़ाये सितम न पाने की ख़्वाहिश न खोने का ग़म.             न कोई ज़रूरत किसी नास़ेह की             न हीं तलब किसी तदबीर की             जो जैसा है मेरे लिए सब है ठीक              इसी को ज़ेहन में रख बढ़ाता हूॅं क़दम             बस अज़्म इतना कि ये रूकने न पाए               तेरे दर पे आने तलक यह क़दम         न पाने की ख़्वाहिश न खोने का ग़म         अब चाहे तू जितना भी ढ़ाये सितम.                                     ~अज्ञात اب چاہے تو جتنا بھی دھاے ستم نہ پانے کی خواہش نہ کھونےکا غم نہ کوئی ضرورت کسی ناصح کی نہ ہی طلب کسی تدبیر کی جو جیسا ہے میرے لئے سب ہے ٹھیک  اسی کو ذہن میں رکھ بڑھاتا ہوں قدم بس عزم اتنا کہ یہ رکنے نہ پائے  تیرے در پہ آنے ت...