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थ्री क्वेश्चन्स

स्थानांतरण के बाद मिलने वाले पारगमन अवधि ने मुझे अपने पैतृक घर जाने का सुयोग प्रदान किया. जब से नौकरी मिली और खास कर जब से मां-पिताजी का देहांत हुआ घर आना-जाना प्रायः बहुत हीं कम होता चला गया .घर के नाम पर पचास-साठ साल पुराना मेरे पिताजी द्वारा ही बनाया मकान का एक हिस्सा जो लगभग तीन-चार कमरे तक सीमित है, मेरे हिस्से में आया जो वर्षों तक मेरी उपेक्षा का शिकार रहा है. आज उसकी स्थिति यह है कि उसके ढ़ंग से मरम्मत में भी कम से कम तीन -चार लाख का खर्च तो है हीं. फिलहाल इसे यदि मैं नहीं कर पा रहा हूं तो ये मेरी नाअहली है.देखें इसे कब पूरी तरह ठीक करा पाता हूं. आज उसी घर में मैं स्वयं को जहां-तहां ढूंढ रहा था. बांकी सब कुछ तो लगभग गायब हो चुका था लेकिन थोड़ी-बहुत मदद घर के पुराने किबाड़-चौखट दरवाजे जरूर कर रहे थे. लेकिन सबसे ज्यादा मदद मिली एक पुरानी अलमारी से; खास कर उसमे रखी पुरानी किताबों से जो एकदम से पीली,बेरौनक और कुछेक तो भुरभुरी हो चुकी थी. इन किताबों से कभी मेरा गहरा नाता रहा था जिसे मैंने ही एकतरफा तोड़ डाला था. उसी अलमारी में रखी एक किताब जो कभी मेरे इंटरमीडिएट के अंग्रेजी विषय के क...