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Showing posts from February, 2025

नया शा'इर बने हो

नया शा'इर बने हो जिस तिस को शे'र सुनाने बैठ जाते हो ख़ुद अपने ही हाथों अपने अश'आर की तौहीन कर जाते हो यहाॅं अश'आर को हुरूफ-ए-तहसीन हैसियत से मिलती है  जो मेरी बात का ए'तबार नहीं तो एक बार किसी महफ़िल में जाकर देखो ये दुनिया वाह वाह भी उसी के लिए करती है जिसे वह अपने लायक या बराबर समझती है.                   ** ग़म हो या शा'यरी दस्त ए बुक़्चा उसका वहीं खोलो  जो हो तुम्हारा हमदर्द या फिर सुकूॅं का हो मुंतज़िर जो हो हम ख़्याल या फिर हम सफ़र  क्योंकि- भूक और छाॅंव की अहमियत का उसी को पता होता है  जो शिकम जला धूप में दूर से चल कर आया होता है. ~ राजीव रंजन प्रभाकर. نیا شاعر بنے ہو جس تس کو شعر سنانے بیٹھ جاتے ہو۔ خود اپنے ہی ہاتھوں اپنے اشعار کی توہین کر جاتے ہو۔ یہاں اشعار کے لیے حروف تحسین حیثیت سے ملتی ہے۔ جو میری بات کا اعتبار نہیں تو ایک بار کسی محفل میں جا کر دیکھو۔ یہ دنیا واہ واہ بھی اسی کے لیے کرتی ہے  جسے وہ اپنے لائیک یا برابر سمجھتی ہے ۔                     ...

जो साथ मेरे चल सको तो चलो

मेरी खुशी के लिए  जो साथ मेरे चल सको तो चलो. क़दम से क़दम मिलाकर चलने की ज़रूरत भी नहीं; तुम आगे और मैं पीछे  ऐसा भी गर मिलकर  हम चल सकें तो चलो. तेज़ तेज़ न सही  धीरे-धीरे हीं मगर   चल सको तो चलो.              ** जो जोश में या ग़ुस्से में  कभी दूर आगे तक मैं बढ़ जाऊं  तुम मुझे आवाज़ देकर बुला लेना.  जो तुम नाराज़ होकर  तेज़ चल काफी आगे तक निकल जाओ तुम वहीं पर रुकी रहना  जब तलक मैं दौड़ कर  तुम्हारे क़रीब न आ जाऊं.             ** क्या हीं अच्छा हो जो  ये आगे पीछे का खेल  तब तलक चलता रहे जब तलक खेल-खेल में ही  पहुॅंच जाएं साथ हीं  हम दोनों वहाॅं जहाॅं  'इस' धरा से 'उस' गगन तक  प्रकाश हीं प्रकाश हो. अगर दिली ख़्वाहिश तुम्हारी भी कुछ ऐसी ही हो तो बिला झिझक पास आ जाओ और चलो. ~ राजीव रंजन प्रभाकर. میری خوشی کے لیے  میرے ساتھ چل سکو تو چلو  قدم سے قدم ملا کر  چلنے کی ضرورت بھی نہیں؛ چاہے تم آگے اور میں پیچھے  ایسا ب...

मेरे गृहशहर की एक यात्रा।

मैं पिछले दो दिनों से अपने गृहनगर में था, ताकि वहाँ के लोगों के साथ कुछ समय बिता सकूँ। अब तक जब भी मैं यहाँ आया हूँ, तो अपने भाई के घर पर ही रुका हूँ, क्योंकि वहाँ मुझे उनका प्यार और स्नेह मिला है, जबकि मेरा अपना घर है जो मेरी अनुपस्थिति में महीनों तक बंद रहता है।                                     ***          दरअसल यह घर वही है जो मेरे पिता ने अपनी मेहनत की कमाई से बनवाया था।             मैंने और मेरे सभी भाई-बहनों ने अपना बचपन इसी घर में बिताया था।                संयोग से मेरे पिता की मृत्यु के बाद आपसी सहमति से हुए बंटवारे में इस मकान का एक हिस्सा मेरे हिस्से में आ गया। इस कटे हुए हिस्से को मैंने आवश्यक मरम्मत और संशोधन करके 'पूर्ण' रूप देने की जरूर कोशिश जरूर की. परिणाम यह हुआ कि मकान पुराना होने के बावजूद आकर्षक लगता है. लेकिन इतने मरम्मत और संशोधन के बावजूद मैं ऊपर बताए गए कारणों से एक दिन भी...

A trip to my hometown.

I was in my hometown for the last two days to spend some time with the people there. Hitherto whenever I happened to come here I stayed at my brother's home due to their love and affection despite having my own house that stands closed in my absence for months.                                     ***          In fact this house is the same one which my father had built with his hard earned money.             I along with all my siblings had spent our childhood days in this house only.                After the death of my father incidentally a ‘part’ of this house fell into my share upon partition reached amicably amongst ourselves. This truncated ‘part’ was sought to give a look of ‘full’ by way of necessary renovations & modifications. But despite such renovations and modifications which made it...